Book Title: Mantri Karmchandra Vanshavali Prabandh
Author(s): Jinvijay
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan
View full book text
________________
१०४
व छा व तारी वंसावली
संतोष्यो जोधो वछइ सांमि, काहनी आयो विषइ कोमि । जोधइ राउ कुंभो कीयो जेर, नामी पिसुण कीयौ योधनेर ।। जोधइ राउ पूरी मति जाणि, आरधीयो मण्डोवर वच्छो आणि । वडहत्थ जोध वीको वधारि, सांखलां घरां सोह दीन्हा सार ॥ वछराज साथि दीधो बडिम्म, जांणियो बुद्धिकै वास जिम्म । सहइ सुत्त वीकरा वछइ साह, सगलो समत्थ लीयो संवाहि ।। भाडंग मारि नरसिंघ भेलि, जंगम्म राउ वीकइ लीयो जेलि। नरहर प्रजा लिहि सार नेस, देवटे लीया मोहिले देस ।। पवाडा वीकढे नही पार, हठा मल्ल सीम घाली हिसार। दावट्टे पिसुन पालीया हुत्त, संबरीया काम वच्छराज मुत्त । जोधो राउ सरग हुओ जाणि, ऊर्यों वीकू राउ छत्र आणि । मुलतांण धणी दीन्हा मुहत्त, जगमैक वछइ कीयो जुगत्त ॥ मुहवत मया करि मुलतांण, सनमान्यो मुहतो मुलताण । सेत्रुजई फरस्यो आदिसांमि, प्रभु पूज नेमि गिरनारि ग्रामि ॥ जादवा राय भेटयो जुगत्त, त्याग करि लाहणी एक तत्त । बछराज धर्म कीयो विशाल, समपीया गरत्थ विरदे सुगाल ॥ करमसी सिरखा जाया कंठीर, वरसिंघ रत्तो नरसिंघ वीर । राउ वीकतणइ करमसी राज, सहु शत्रु मित्र सार सकाज ॥ सातल नई राउलखांन सोट, वीकम्म कहै कांड करौ ओट । तिहुं रावास्युं हुइ छै तोट, करमसी करो जिम हुवइ कोट ॥ कहिजइ छई खांना भीड काय, जपीयो जु वेलो खान जाय । महविरुद अनेक करमद(ट) प्रधान, मानीया खान महुता दे मान ॥ उलूंखांन गढ अजमेर, निश्चल कीयो वीकइ वीकनेर । महुतइ द्रव्य खरच्यो मनइ मोट, करमसी कीयो वीकपुर कोट ॥ प्रथमादि आदि पूर्यों प्रमाण, वासीयो नगर बांधीयो वखांण । समपीया ऊण जीवार साह, बइताल जीतो उभइ अबांह ॥ मानीयो नरो मंत्रिव धन्न, कर टीको दीन्हो लूणकरण । गोरहरो धायो करन जंग, भिड खेतखान महमदभंग ॥ करण राउ आगलि करमसीह, आ बधई बेव भागा अबीह । दावटे करन हींसार देस, नीजलइ नयर माजलई नेस ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122