Book Title: Mantri Karmchandra Vanshavali Prabandh
Author(s): Jinvijay
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan
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व छा व तां री वं सा वली ।
सरस वचन दे सारदा सुप्रसन हुए सुरराय । रिधि सिधि बुधि सहु संपजई प्रणमंता ता पाय ॥
१ ॥ छंद पाथरी ।। मुपसंन सकति आरूढसिंह, जसवंततणो जस जपां जीह । मूं देहि सु आपर महामाय, भजिये दलिद्र आवियो भाइ ॥२
संग्रामतणो आसाढ सिद्ध, करतार अपइ जस काज किद्ध।
वडवडा काम घरण्ण वाच, सामभ्रंमतणो जो विरुद साच ॥ मालवइतणा धरम जुइ माण, सांकतो बोल्यो सुरताण । चतरंग अंते वरदण चार, दीप इम सत्तमइ गल दुवार ॥ ४ सगरेण पाट बोहिव समथ, पंचाल भीम सारिष पथ । मालबइ धणी दीन्ही मेल्हाण, रिणवट्ट घट्ट ऊपर इराण ॥ ५ हलिया कसे न ऊमटे इम, भारथ भुजाल जाणे मुभीम । गजेवा अरियणततणो गाऊ, चित्तोडतणो गढ लेण चाऊ॥ ६ मेवाड महिपति करि मंडाण, परवियो साहि सम्हो पयाण । चित्तोड चाऊ बोहिथ बढेउ, लेहि असंप लष सेन लेउ ॥७.
सजि सेन राण मिलियो समथ, कुलदीपक राषण कलह कथ । पतिसाह राण बे--- सप्राण, ज्यों मद्दजोध जुडिया जुवाण ।। आरुण हुघि उड्डी अंगार, सत्र हुवै पंड बाजि --- सार। राणा बल बोहिथ विढे रूक, भागो कटक्क पल किया भुक्क॥ सो एक सहस साथ संग्राम, हालियो सरगमन करेइ होम ।
कुल बोहि घरइ उदयो करंन, महिमा समंदन नइ मोटमंन । सूरा सनाह मेले सनढ, गंजे वसत्र लीयो मछेन्द्र । पाटपति बैठो राण पाट, घोरिए अरि लियो धेन घाट ॥ ११ कोपियो राण केवियां काल, सुरताणतणी लूटारसाल। पतिसाहतणइ दर गई पुकार, मारग षजीना लीयो मारि॥ १२ मालवइ धणी दीना मेल्हाण, जंगम पूठि चढिया जुवाण । चुहवाण राण सिर चढत चोट, कललै कटट्ट वीटीयो कोट॥१३ बडो हुअंगम दुकुल होम, धप पडयें धार उड्डियो धोम । जोहरै आगि दीनी जमंग, पलहलै सहिर वाजियो षग॥ १४ सातसै सुभट सरसौ समथ, रण रहियो राणो रूक हथ। चहुवाण राणरा पुत्र च्यार, नानाणे ऊवरिया निडार॥ १५.
षेत विढि समरथ जाइ षेड, कुलदीपक बोहिथतणो केड। . संपत्त जिणेसर आइ सूर, प्रतिबोध कियो तिण दयापूर ॥ जिणयासण धंम जुगत्त जाण, पारसनाथ पूजियो पाण। सेर्जेज संघ मेल्यो संपोह, रंगसुं द्रव्य मांडियो मेह ।। थाल दे सुपारी ठाम ठाम, गल ग्रह्यो घणो द्रव गाम गाम । जिनराजतणी हम करइ जात्र, गिरनारि नेम चरपिया गात्र ।।
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