Book Title: Mantri Karmchandra Vanshavali Prabandh
Author(s): Jinvijay
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan
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वछा वतारी वं सावली
असमत्ति वढ्यो आयो अजमेर, छुव्बरे घाट पाखरां घेर। नीसरीयो मालो छाडि नेस, दावटे लीया पतिसाह देस। रणमल हुवा घर रखपाल, वा(चा ?)चर युद्ध पईठा वांधि चाल । जइतो कूपो अखइंराज, सहु सेनमूर रहिया सकाज ॥ संख्या विण पडीया मालसेन, मेल्ही प्रजाद पतिसाह मेल । मंडोवर उल्लली धरी मार, सहु सेरसाह कीयो संघार ॥ बोटीयो मालगो चढी बेट, सुरताण देस लीया समेट। नगराज सामिभ्रम तुझ धन, वैरीया देश दीन्हा विहुन॥ खीजीयो नगो नवलाख खेड, उपाडि अरी नाख्यो उखेड ।
जड काटी पिसुणा कीया जेर, जालि मुहुल गढ जोधनेर ॥ सांमि बल सत्रां कीयो संघार, पर चडे मुहुत्ता नही पार। वलीयो वइरी बारि वत्त, तेडइ कला दीधो तखत्त ॥ ९२ सामरो वइर धरवालसुत्त, सहु मेल नगो संग्रामपुत्त । सेजुज चढे जीतो संसार, समपीया नगो नित शत्रुकार॥ ९३ धन नगे पाल्यो सामिभ्रम, क्रीया निर्वाण सुधर्म कर्म । अजमेर समरि अरिहंत अंत, नगराज सरग पहुतो निभ्रंत ॥ ९४
सांगो पहिरायो साहसूर, हित घणइ सहित तेडइं हजूर ।
तपीयो कल्याण मोटइ तखत्त, मुहत्तो संग्राम मनमे रमत्त ॥ कैवास बुद्ध अभयाकुमार, सुत बीज सो सांगो संसार । वडदान दियण छाजइ वखाण, जग भोजकरण वीकम जाण ॥९६ कुमकुमो साख केसरि कपूर, चौवा कस्तूरी अगर चूर । सोहइ सुअंग परिमल सुवास, रजवट्ट इन्द्र ओपम रहास ॥ ९७ सामरइं काम महुतो संग्राम, हणमंत जिसो पोरस हाम । निलवट्ट सदा दीसइ सनूर, कोटा किवाड मुहतो करूर ।। ९८ सामछल मुत्त कीया सधीर, वीकमधर सांगो वजीर। संग्राम करइ कल्याण मुत्त, पह सेवइ मोटा राजपुत्त ॥ ९९
वीसरीयो कल्लो वीरां वताइ, राखीयो बंधव सांगो खराय। महतो मरजाद मरुधरा मांम, ससमत्थ सामि धरमी संग्राम ॥ अह पुरे हल मेलई अस्समांन, खित लेण तणी मन हसनखांन । धर काज मिलइ संग्राम धन्न, मुहुतइ रीझवीयो खांन मन्न ॥ वीकपुर धरा साझत विनाण, प्रारंभ कीयो हाजी पठाण । पाटपति मुछल पूरे प्रधान, खित राखी मुहत्तइं मिलई खांन । चीतोड परणवा कुंवर चाउ, रंगरली घणो कल्याणराउ । जगपति सकोडी कीध जान, परठवे साथ सांगण प्रधान ॥ कमाल द्रव्य भरीया कंठाल, मुहुतई खरच मोकल्या माल । जानी सहु उपरि कीध जान, वीकपुरतणो वधारि मांन ।। मंडोवर आबू मल्यो मान, पाटपति संघ वधीयो प्रमाण । पृथी माद ध्रवी दीन्हो प्रवाह, संतोषइ सांगो उदयसाह ।। रेलीयो छैल मेवाड रांण, वदीयो तिवार सांगण वखाण । कल्याणराउ कहीया कथान, मुहुता कर जाता एक मांन ॥
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