Book Title: Mantri Karmchandra Vanshavali Prabandh
Author(s): Jinvijay
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan

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Page 106
________________ श्री करम चंद मंत्रि-वंश प्रबन्ध । ९७ १६७ १६८ १७४ बंदि छुडावी देसनी, अशनि वसनि सनमानि रे । निज निज घरी पहुती करी, एहि ज गिणि धन गानि रे ॥ वीका० ॥ १६६ दातारे कर खंचीयउ, जलधरि खाची धार रे । तिणि अवसरि कण कंचणइ, वूठउ राय सधार रे ।। वीका ० ॥ श्रीसेष धरती धरी, जांतां जिम पातालि रे । तिम सांगउ त्रिडूलती राखी, प्रजा इणि काल रे ॥ वीका० ॥ जइ मुहत सोवन तणउ, करत तिवारई लोभ रे । पडतां प्रज- प्रासादन, कुण आपत तिहां थोभ रे ।। वीका० ।। १६९ सकार देइ करी, तेरह मासां सीम रे । डूली धरणी जिनि घरी, अरिभयभंजणि भीम रे ।। वीका०|| १७० पत्रीसर दुरभिख पडड़, रोगिल निबला लोक रे । साजा करावर मंत्रवी, देइ सगला थोक रे ॥ वीका० ॥ १७१ निबला जे साहमी तिहां, आव्या मंत्रिनइ पासि रे । देइ वरषवरउ तिया, पूरी मननी आस रे ।। वीका० ॥ १७२ तेरह मासन छेड, देइ संबल हाथि रे । पहुचाया निज मंडलइ, मेली तेहनई साथ रे | वीका० ॥ १७३ तुरसमखानइ लूटतां, सार सीरोही देस रे । सहस जिगिंद प्रतिमा ग्रही, जाणी सोवनलेस रे ॥ वीका० ॥ साहि दरबार आणियां, मंत्रीसर वर भावि रे । सोनइया देइ करी, छोडावइ तिहां आवि रे ॥ वीका० ॥ साह सारंग संतति विना, सोवन भूषण काइ रे । न लहइ पाए पहिरवा, इसउछइ साहि पसाई रे ॥ वीका० ॥ मंत्रीसरि रंजवी, साहिथी दूअउ पाइ रे । बछराज संतति वर्णिनी, पिहरइ सोवन पाइ रे ॥ वीका० ॥ तुरसमखांनइ आणिया, वाणिया बंदर जेह रे । गुजरमंडलथी सवे, छोडावर मंत्रि तेह रे ॥ वीका० ॥ जैन- याचक भणी जिणि दिया, परवाहइ गजवाजि रे । शत्रुंजय मथुरापुर, देइ द्रव्यनउ साज रे ॥ वीका० ॥ १७९ जीर्णोद्धार कराविया, लाहण सगलइ देइ रे । उत्तरि जां काबिलपुरी, इम जगमइ सोह लेइ रे || बीका० ॥ १८० अंग इग्यारह सांभल्या, गीतारथ गुरु पासि रे । आगम लिखिवा आपियउ, हरखइ जिणि धनरासि रे ॥ वीका० ।। १८१ गिरिनारइ पुंडरगिरइ, चैत्य कराविवा सार रे । धन खरचइ तृणनी परइ, कीरति समद्रहां पार रे | वीका० ।। १८२ चउपर्वी पालइ जिहां, कारू तरूनउ छेद रे । न करी सकइ कोइ किहां जाणइ धरमनउ भेद रे ।। वीका० ॥ १८३ सतलज डेक रावीतणा, ऊवारइ सवि मीन रे । रायसिंह राजइ मंत्रवी, पालइ सवि हीन दीन रे ।। वीका० ॥ १८४ रायसिंह फउज लेइ करी, हडफइ बलोचानी माल रे । भांजि किम कहि हरिणली, सहइ सीहांरी फाल रे ॥ वीका० ।। १८५ १७८ उक्तं च-जा मन निवडइ कुंभयडि, सींह चवेड चडक । ताम समत्त मयलहं, पर पर वज्जइ ढक्क || ४ बंदिइ जे तिहां आविया, छोडावर मंत्रिराज रे । स्नात्र करावर जिणतणा, देहरे नितु सुखकाजि रे || बीका० ॥ १८६ श्री जिनकुशलसुरिंदना, धूभ करावइ अनेक रे । तिणिथी उदउ दिनि दिनि घणउ, वंसनी राखतउ टेक रे ।। वीका० ॥ १८७ श्रीफलवधिपुर दीपत, धूभ करावइ उदार रे । श्रीजिनदत्तमुरिंदनउ, जागर जगि जसुकार रे | वीका० ॥ १८८ ॥ ढाल ८, ईसाणिंद खोलइ घरइ - ए देशी ॥ कर्मचंद्रनुं अकबर पासे गमन । मंत्रीसुत सोहइ सदा, भाग्यचंद्र भड-भाग रे । लखमीचंद्र गुणे भलउ, राज्यधुरानइ लाग रे || धर्मप्रसादइ दिनि दिनिइ, श्रीवछराजनउ वंस रे । उत्तर अयनइ रवि जिसउ, दीप्यउ कुल अवतंस रे-आंकणी।। रायसिंह राजानइ दीयउ, श्रीसाहिइ सनमानि रे । राज-बिरूद रंगइ कीयउं, पंच हजारी गानि रे ॥ धर्म० ॥ भूपति दलपतिराजना, सुत जसवंतदे जात रे । कृष्णसिंह सूरज समउ, सूरिजसिंह विख्यात रे ॥ धर्म० ॥ दैवनसरं निजसामिनउ, कलुषचित्त मनि जाणि रे । हुंणहार कहु किम मिटर, बलि कलियुग अहिनाण रे || धर्म० ॥ १९३ १९२ १३ Jain Education International १७५ १७६ १७७ For Private & Personal Use Only १८९ १९० १९१ www.jainelibrary.org

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