Book Title: Manav Bhojya Mimansa
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 8
________________ [ म ] छोटा ट्रैक्ट छपवाकर समाधान करने की चेष्टा की है। परन्तु यह विषय इतना गम्भीर है कि थोड़े से शब्दों तथा वाक्यों द्वारा समझाकर समाधान करना अशक्य ही नहीं, असम्भव है । यह देखकर कई जैन विद्वानों तथा मित्र-मुनिवरों ने इस सम्बन्ध में अपने विचार प्रदर्शित करने के लिए मुझे बार बार अनुरोध किया, यद्यपि मेरे लिए अपने प्रकृत-कार्य को रोक कर इस नये विषय में योग लगाना कठिनथा, फिर भी विषय का गुरुत्व समझकर मैंने इस सम्बन्ध में कुछ लिखने का निश्चय किया, तत्सम्बन्धी साहित्य का अवगाहन कर "मानव-भोज्य मीमांसा" लिखने का कार्य शुरू किया, ग्रन्थ आज से तीन वर्ष पहले ही पूरा हो चुका था, परन्तु सम्पूर्ण ग्रन्थ छपने में समय अधिक लगेगा, इस विचार से इसका तृतीय अध्याय मात्र, जिसमें भगवान महावीर तथा उनके श्रमणों के सम्बन्ध में मांस, पुद्गल, आमिष प्रमुख प्रयुक्त शब्दों की व्याख्या तथा समन्वय किया गया है, प्रथम प्रकाशित करने का निश्चय कर वह अध्याय प्रेस में भेज दिया गया, जिस आशय से यह अध्याय पृथक् छपवाना ठीक समझा था, वह आशय प्रेस के प्रमाद से सफल नहीं हुआ जिस काम के दो महीनों में हो जाने की आशा रक्खी थी वह काम सालभर में बड़ी मुश्किल से पूरा हुआ। अब “मानव भोज्य मीमांसा" अपने सम्पूर्ण रूप में प्रकाशित हो रही है, इसमें कुल ६ अध्याय हैं, जिनका दिग्दर्शन निम्न प्रकार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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