Book Title: Mahopadhyaya Yashovijayji Ganikrut Atmasamvad
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 1
________________ महापाध्याय श्रीयशोविजय गणिकृत आत्मसंवादः । __ सं. विजयशीलचन्द्रसूरि उपाध्याय श्रीयशोविजयजीनी एक अपूर्ण छतां अद्भुत रचना अहीं आपवामां आवे छे : आत्मसंवाद. तेमनी प्राप्य-अप्राप्य रचनाओनी अद्यावधि तैयार थएलो सूचिओमां आ नाम प्रायः नथी. केमके सूचिकारोए तो. ए माटे बांधेलां धोरणोने आधीन रहीने ज निर्णय करवानो होय छे. ते धोरणोने चातरीने अटकल-अनुमाननो आधार लेवानुं तेमने माटे वा होय छे. आ रचना यशोविजयजीनी होवानो एक पण लिखित आधार के पुरावो प्रति थको प्राप्त थतो नथी. प्रतिना प्रारंभे 'एँ नमः' नथी, के नथी प्रतिना प्रान्तभागे कर्ता के लेखकना नामनुं सूचन करती पुष्पिका. अने छतां आ रचना यशोविजयजीनी ज छे तेम कहेवा पाछळ बे मुख्य कारणो छे ते आ: तेमना हस्ताक्षर अने तेमनी शैली. वर्षो पूर्वे आ प्रतिनी झेरोक्स माग हाथमां आवी, त्यारे तेने जोतां ज ते यशो-हस्ताक्षर होवानुं मने खातरीपूर्वक लागेलुं. आजे जेम जेम ते प्रतिनी लखावट, एक एक अक्षरना मरांड वगैरे ध्यान दईने जोऊं छु, त्यारे ते तेमना ज हस्ताक्षर होवा विशे कोई संदेह रहेतो नथी. यशो-हस्ताक्षरने ओळखनारा आपणे त्यां गण्या गांठ्या जे थोडा जणा छे, तेओ मारा आ तारण साथे संमत थशे तेवी मने श्रद्धा छे. तेमनी सवलत खातर झेरोक्स नकलनी प्रिन्ट आ साथे मूकवामां आवी छे. प्रति, ग्रंथकारे रचवा धारेला बृहत्काय ग्रंथना खरडा (Draft) समान छे. प्रारंभ खूब सरस अन सुघड लखावटथी थयो छे. पण एकाद पानं वह्या पछी तरत ज ग्रंथकार उतावळमां आव्या छे अने तेमनी कलम एवी तो गति पकडी ले छे के टर टेर तेओ पंक्तिनी पंक्तिओ लखीने रह करता जाय छे. अने पाने पाने हांसियामां पाठोनां उमरण कर्ये ज जाय छ: एटलुं ज नहि, आ त्वराने कारणे, यशोविजयजी जेवा विद्वान पुरुष माटे कल्पी न शकीए तेत्रो क्षतिओ पण आमां थयेली जोवा मळे छे. दा.त. दोषाणां ने बदले दोषानां. नव्ये ने बदले छेदितव्ये वगैरे. अने अक्षरो छुटी जवान पण घणीवार बनतुं जात्रा मळे छे. 'त्' ना 'द' थवानी होय त्यां 'त' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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