Book Title: Maheshwar Kavi Virachita Sanshayagaral Janguli Nammala
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

View full book text
Previous | Next

Page 17
________________ 28 यदि स्यादनयोः क्वापि क (का) दाचित्को व्यतिक्रमः || १७४ ||३५ इति ओष्ठ्य- दन्त्यौष्ठ्यवकार निर्देश: ॥ अथ तालव्य - मूर्धन्य - दन्त्यानामपि लेशतः । शषसानां विशेषेण निर्देशः क्रियतेऽधुना ||१७५|| ३६ अथोष्मनिर्देश: श्यामाक शाक शुक शीकर शोक शूक शालूक शंकु शक शंकर शुक्र शकाः । शोडीर शाट शकटाः शिपिविष्ट शिष्टाः शाखोट शाटक शटी शटितं शलाटम् ॥ १७६ ॥ ३७ शीतं च शात शित शातन शुम्ब शम्बा शम्बूक शम्बर शुनार शवाः शिलीधृः । शोफे : शुभं शरभ शारभ शुम्भ शम्भु वाणि शुभ्रशरदौ शकुनिः शकुन्तिः || १७७।। ३८ शाला शिला शिवल शाद्वल शालु शेलु शार्दूल शूल शबलाः शमलः शृगालः । शेफालिका शिथिल शृंखल शील शैल - शेवाल शल्य शल शम्बल शैवलानि ॥ १७८॥ ३९ — शालालु शालु शलि शाल्मलि शुल्क शल्क शुल्कानि शल्य शलभौ शललं शलाका । श्रेणिः शणः श्रवण शोणित शोण शाण श्रेणी श्रुत श्रमण शून्य शरण्य शंकाः ॥ १७९ ॥ ४० Jain Education International शोचिः शची शुचिशय: शरु शर्म जी (शी ? ) र्णं श्रीपर्ण शोथ शपथ श्लाथ शंड शंढा: 1 श्रेयः शमः शमन शोधन शिक्य शाक्य शांडिल्य शाल्वल शमी शुनक श्रविप्राः ॥१८०॥ ४१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24