Book Title: Maheshwar Kavi Virachita Sanshayagaral Janguli Nammala
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan
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यदि स्यादनयोः क्वापि क (का) दाचित्को व्यतिक्रमः || १७४ ||३५ इति ओष्ठ्य- दन्त्यौष्ठ्यवकार निर्देश: ॥
अथ तालव्य - मूर्धन्य - दन्त्यानामपि लेशतः । शषसानां विशेषेण निर्देशः क्रियतेऽधुना ||१७५|| ३६
अथोष्मनिर्देश:
श्यामाक शाक शुक शीकर शोक शूक शालूक शंकु शक शंकर शुक्र शकाः । शोडीर शाट शकटाः शिपिविष्ट शिष्टाः शाखोट शाटक शटी शटितं शलाटम् ॥ १७६ ॥ ३७
शीतं च शात शित शातन शुम्ब शम्बा
शम्बूक शम्बर शुनार शवाः शिलीधृः । शोफे : शुभं शरभ शारभ शुम्भ शम्भु वाणि शुभ्रशरदौ शकुनिः शकुन्तिः || १७७।। ३८
शाला शिला शिवल शाद्वल शालु शेलु
शार्दूल शूल शबलाः शमलः शृगालः । शेफालिका शिथिल शृंखल शील शैल - शेवाल शल्य शल शम्बल शैवलानि ॥ १७८॥ ३९
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शालालु शालु शलि शाल्मलि शुल्क शल्क शुल्कानि शल्य शलभौ शललं शलाका । श्रेणिः शणः श्रवण शोणित शोण शाण
श्रेणी श्रुत श्रमण शून्य शरण्य शंकाः ॥ १७९ ॥ ४०
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शोचिः शची शुचिशय: शरु शर्म जी (शी ? ) र्णं श्रीपर्ण शोथ शपथ श्लाथ शंड शंढा: 1
श्रेयः शमः शमन शोधन शिक्य शाक्य
शांडिल्य शाल्वल शमी शुनक श्रविप्राः ॥१८०॥ ४१
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