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अहिंसा ही ज्वलंत समस्याओं का हल है
समस्या : समाधान
वर्तमान विश्व की स्थिति पर जब हम नजर डालते हैं तो तथ्य रूप में एक बात स्पष्ट रूप से सामने आती है कि हिंसा दिन-प्रतिदिन प्रसार पा रही है । इसके परिणामस्वरूप जन-जीवन अन्याय, शोषण, धोखाधाड़ी, भ्रष्टाचार जैसी अनेक बुराइयों से अभिभूत हो रहा है। इन बुराइयों को मिटा कर जन-जीवन को स्वस्थ बनाने के लिए अहिंसा एकमात्र विकल्प है, साधन है। इसलिए यह नितान्त अपेक्षित है कि अहिंसा का अधिक-सेअधिक प्रचार-प्रसार हो। उसके प्रति जन-निष्ठा जागृत की जाए। हालांकि इस प्रयत्न से सभी लोग अहिंसक बन जाएंगे, हिंसा जड़मूल से समाप्त हो जाएगी, सारी बुराइयों का अन्त हो जाएगा, ऐसा सोचना अत्याशा है, अतिरेक है। हजार सार्थक और प्रबल प्रयत्न के बावजूद भी कुछ प्रतिशत लोग ही पूर्ण अहिंसा के व्रत को स्वीकार कर सकेंगे । और यह ठीक भी है। काम-क्रोधादि पर पूर्ण विजय प्राप्त करना कोई सहज बात नहीं है। यह एक आदर्श स्थिति है । अहिंसा की प्रति निष्ठा जागने के उपरान्त भी उसकी पूर्णरूपेण साधना करना हर कोई के सामर्थ्य की बात नहीं है। पर इसके उपरान्त भी अहिंसा के प्रचार-प्रसार की सार्थकता एवं उपयोगिता में कहीं कोई न्यूनता नहीं आती। पूर्ण रूप में न सही, एक सीमा तक अहिंसा की पालना तो हर कोई कर ही सकता है। आदर्श तक हर कोई नहीं पहुंच सकता, पर उस दिशा में एक-एक चरण आगे तो बढ़ ही सकता है। हिंसा को कैसे रोका जाए ?
प्रश्न है, हिंसा का विस्तार क्यों हो रहा है ? मेरी दृष्टि में इच्छाओं का असीमित विस्तार, साम्प्रदायिक उन्माद, ममता और बड़प्पन की स्पर्धाये कुछ ऐसे कारण हैं, जिन्हें हिंसा के बढ़ने के लिए उत्तरदायी माना जा सकता है । इच्छाओं का संयम, साम्प्रदायिक अनाग्रह, 'वसुधैव कुटुंबकम्' की भावना एवं आत्मौपम्य बुद्धि को बढ़ावा देकर इन कारणों को कमजोर-से
अहिंसा ही ज्वलंत समस्याओं का हल है
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