Book Title: Maheke Ab Manav Man
Author(s): Tulsi Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 191
________________ ९३ धर्म का यथाथ स्वरूप प्रकट हो मैं वर्षों से इस बात को अनुभव कर रहा हूं कि आज के बुद्धिवादी वर्ग को धर्म के नाम से एक चिढ़-सी है। धर्म में उसे कोई रस नहीं है, बल्कि वह उससे नफरत करता है, उसे दकियानूसी विचार और अफीम की गोली तक करार देता है। यह मात्र मेरी ही अनुभूति नहीं है, अपितु बहुत-सारे लोग ऐसा ही अनुभव कर रहे हैं। दूसरों की बात मैं क्यों करूं, आपमें से भी बहुत सारे ऐसी ही अनुभूति करते होंगे। नफरत क्यों ? प्रश्न है, बुद्धिवादी-वर्ग को उसमें रस क्यों नहीं है ? वह उससे नफरत क्यों करता है ? बहुत सारे लोगों का अभिमत है कि आधुनिक शिक्षा, विज्ञान एवं भौतिक प्रगति इसका कारण है। पर मेरा अभिमत इस संदर्भ में यह है कि अलबत्ता यह एक कारण तो हो सकता है, पर प्रमुख कारण नहीं है । आप पूछेगे, फिर प्रमुख कारण क्या है ? मेरी दृष्टि में इसको प्रमुखतम कारण वे तथाकथित धार्मिक हैं, जिन्होंने धर्म को रूढ़ि, बाह्याचार, दंभ और स्वार्थ-साधन के रूप में प्रयुक्त किया। इसका दुष्परिणाम यह आया है कि धर्म का वास्तविक सत्य स्वरूप कहीं नीचे दब गया है और उसके नाम पर अधर्म उभरने लगा है। ऐसी स्थिति में भला बुद्धिवादी वर्ग की श्रद्धा उस पर टिक भी कैसे सकती है। धर्म का सही स्वरूप आज सबसे बड़ी आवश्यकता इस बात की है कि धर्म के सही स्वरूप को जन-जन के समक्ष रखा जाए। इस संदर्भ में एक बात स्पष्ट कर दूं । धर्म से मेरा आशय किसी सम्प्रदायविशेष से नहीं है, बल्कि सच्चरित्रमूलक मौलिक आदर्शों से है । सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, सत्य आदि शाश्वत तत्वों से है। आज देश में लाखों साधु-संन्यासी हैं, हजारों धर्म-संस्थान हैं। पर कैसी विडंबना है कि धर्म का यह सही स्वरूप जनता के सामने नहीं आ रहा है। मैं मानता हूं, उन पर यह उत्तरदायित्व है कि वे व्यापक दृष्टिकोण के साथ धर्म के सही धर्म का यथार्थ स्वरूप प्रकट हो १७५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222