Book Title: Maheke Ab Manav Man
Author(s): Tulsi Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 212
________________ ० दीन वह नहीं, जिसके पास धन नहीं, मकान नहीं, मोटर नहीं, सुखसुविधा के विभिन्न साधन नहीं। फिर दीन कोन ? दीन वह है, जो चरित्रभ्रष्ट है, नीतिभ्रष्ट है, मानवता को बेचता है, अपने-आप को नीलाम करता है । (७) ० किसी भी स्तर पर परस्पर चलनेवाले संघर्ष, विवाद या वैमनस्य के केन्द्र में ऐकान्तिक आग्रह काम करता है (८) ० पुण्य का बंधन निर्जरा के साथ ही होता है। (९) ० पुण्य-बंधन की कामना करना तो अपने आपमें पाप-बंधन का हेतु • शांति कहां से आए ? वह आकाश से तो टपक नहीं सकती, न ही धरती पर खेतों में उग ही सकती है । उसका तो एकमात्र स्रोत व्यक्ति की अपनी आत्मा ही है। उसे वहीं खोजा जा सकता है। और इस बात का मैं भरोसा दिला सकता हूं कि वहां खोजने से वह अवश्य प्राप्त होगी। (१३) ० हिंसा के माध्यम से शत्रु को नहीं मिटाया जा सकता। स्थायी रूप से शत्रु को मिटाने के लिए अहिंसक तरीका ही कारगर सिद्ध हो सकता है। (१३) ० शत्रु को नहीं, शत्रुता को मिटाने का प्रयास होना चाहिए (१३) • रोगी को नहीं, रोग को मिटाया जाना चाहिए । (१३) ० दीक्षा गृहस्थ-जीवन की समाप्ति और साधु-जीवन की शुरुआत है । असंयम-जीवन की समाप्ति और संयममय जीवन का मंगलाचरण है। (१५) ० दीक्षित जीवन तो उन्मुक्त राजपथ है। इस राजपथ पर कदम बढ़ाने वाला अनिर्वचनीय सुख और शान्ति की मंजिल को प्राप्त होता है। (१५) ० धर्म सुख और शांति से जीने का एकमात्र साधन है। (१७) ० ज्ञान अनन्त है, असीम है, जबकि जीवन के क्षण सान्त हैं, ससीम हैं । (१८) ० वह ज्ञान जड़ है, वह शिक्षा व्यर्थ है, जो सदाचरण से शून्य ० जब जीवन का आध्यात्मिक पक्ष दुर्बल होता है तो पग-पग पर अशांति का अनुभव होने लगता है। (२०) १९६ महके अब मानव-मन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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