Book Title: Maheke Ab Manav Man
Author(s): Tulsi Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 179
________________ ८७ धर्म को सही समझे, सही जीएं धर्म क्या है ? धर्म जीवन का परम तत्व है, पर उसके सन्दर्भ में व्यक्ति की अवधारणा यथार्थपरक होनी चाहिए। केवल अर्चना, पूजा और बाह्य आडम्बरों के निर्वाह मात्र में धर्म नहीं है। धर्म के मूलभूत तत्व सत्य, अहिंसा, संयम और सदाचार हैं। इनसे जीवन को भावित करना धर्म है। पर बड़े खेद की बात है कि धर्म के मौलिक तत्वों को भुलाया जा रहा है। उन्हें जीवन-व्यवहार में ढालने की बात उपेक्षित की जा रही है। धार्मिकों के दो वर्ग आज समाज में दो वर्ग बहुत साफ-साफ दिखाई देते हैं। एक वह वर्ग है, जो उपासना को ही सब कुछ मानता है। उसके कर्म धर्म के आदर्शों के अनुगामी हैं या नहीं, इस ओर ध्यान देने और सोचने की वह कोई आवश्यकता नहीं समझता। दूसरा वर्ग वह है, जो पूजा, उपासना व कर्मकांड में तनिक भी विश्वास नहीं रखता। इनकी जीवन में कोई उपयोगिता एवं उपादेयता नहीं मानता। आचार मुख्य है ___ अणुव्रत आंदोलन इन दोनों वर्गों के लिए एक व्यवहारोपयोगी सन्मार्ग प्रशस्त करता है । वह बताता है कि उपासना वैयक्तिक विश्वास का विषय है। उसकी भी जीवन में एक सीमा तक उपयोगिता है । उसको सर्वथा अस्वीकार नहीं किया जा सकता, पर वह धर्म का मुख्य पक्ष नहीं है । मुख्य पक्ष यह है कि व्यक्ति सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, संयम, सात्विकता, मैत्री, संतोष आदि तत्वों को जीवन में संजोए । धर्म क्यों ? व्यक्ति इस बात पर अपना ध्यान केन्द्रित करे कि धर्म जीवन की शुद्धि के लिए है, उसके विकास के लिए है । अत: उसका इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए उपयोग हो। धर्म के नाम पर अनर्थ करना, स्वार्थ साधना और धर्म को सही समझे, सही जीएं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222