Book Title: Mahavir ka Jivan Author(s): Sukhlal Sanghavi Publisher: Z_Darshan_aur_Chintan_Part_1_2_002661.pdf View full book textPage 3
________________ ३६ जैन धर्म और दर्शन जीवन विषयक लेख पुस्तक आदि कितनी ही सामग्री प्रस्तुत क्यों न हो पर श्राज का जिज्ञासु उस सामग्री के बड़े ढेर मात्र से सन्तुष्ट नहीं । वह तो यह देखना चाहता है कि इसमें कितना तर्क बुद्धि-सिद्ध और कितना इतिहास -सिद्ध है ? जब इस वृत्ति से वह आज तक के महावीर - जीवनविषयक लेखों को पढ़ता है, सोचता है त उसे पूरा संतोष नहीं होता । वह देखता है कि इसमें सत्य के साथ कल्पित भी बहुत मिला है । वह यदि भक्त हो तो किसी तरह से अपने मन को मना ले सकता है; पर वह दूसरे तटस्थ जिज्ञासुओं का पूरा समाधान कर नहीं पाता । वैज्ञानिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण का प्रभाव इतना अधिक गहरा पड़ा है कि खुद महावीर के परम्परागत अनुयायियों को भी अपनी नई पीढ़ी का हर बात में समाधान करना मुश्किल हो गया है । यही एक मात्र वजह है कि चारों ओर से महावीर के ऐतिहासिक जीवन लिखे जाने की मांग हो रही है और कहीं-कहीं तदर्थं तैयारियाँ भी हो रही हैं । आज का कोई तटस्थ लेखक ऐतिहासिक दृष्टि से महावीर जीवन लिखेगा तो उसी सामग्री के आधार से लिख सकता है कि जिस सामग्री के आधार से पहले से आज तक के लेखकों ने लिखा है। फर्क यदि है या हो सकता है तो दृष्टिकोण का । दृष्टिकोण ही सच्चाई या गैर-सच्चाई का एक मात्र प्राण है और प्रतिष्ठा का आधार है । उदाहरणार्थ महावीर का दो माता और दो पिता के पुत्र रूप से प्राचीन ग्रन्थों में वर्णन है । इसे साम्प्रदायिक दृष्टि वाला भी लेता है और ऐतिहासिक दृष्टि वाला भी । पर इस असंगत और अमानवीय दिखाई देने वाली घटना का खुलासा साम्प्रदायिक व्यक्ति एक तरह से करता है और ऐतिहासिक व्यक्ति दूसरो तरह से । हजारों वर्ष से माना जाने वाला उस असंगति का साम्प्रदायिक खुलासा लोक-मानस में इतना घर कर गया है कि दूसरा खुलासा सुनते ही वह मानस भड़क उठता है । फिर भी नई ऐतिहासिक दृष्टि ने ऐसी स्थिति पैदा की है कि उस चिर परिचित खुलासे से लोक-मन का अन्तस्तल जरा भी सन्तुष्ट नहीं । वह तो कोई नया बुद्धिगम्य खुलासा पाना चाहता हैं या उस दो माता, दोपिता की घटना को ही प्रसंगत कह कर जीवन में से सर्वथा निकाल देना चाहता है । यहीं बात तत्कालजात शिशु महावीर के अंगुष्ठ के द्वारा मेरु- कम्पन के बारे में है या पद-पद पर महावीर के आसपास उपस्थित होने वाले लाखों-करोड़ों देव-देवियों के वर्णन के बारे में है । कोई भी तर्क और बुद्धि से मानव-जीवन पर विचार करने वाला ऐसा नहीं होगा जो यह मानने को तैयार हो कि एक तत्काल पैदा हुआ बालक या मल्लकुस्ती किया हुआ जवान अपने अँगूठे से पर्वत तो क्या एक महती शिला को भी कँपा सके ! कोई भी ऐतिहासिक Jain Education International For Private & Personal Use Only 4 www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16