Book Title: Mahavir ka Jivan
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Z_Darshan_aur_Chintan_Part_1_2_002661.pdf

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Page 8
________________ भगवान् महावीर का जीवन सकती है कि भगवान की जननी त्रिशला ही क्यों न हो और देवानन्दा उनकी धातृमाता हो। इस पर मेरा जवाब यह है कि देवानन्दा धातृमाता होती तो उसका उस रूप से कथन करना कोई लाघव की बात न थी । क्षत्रिय के घर पर धातृमाता कोई भी हो सकती है । देवानन्दा का धातृमाता रूप से स्वाभाविक उल्लेख न करके उसे मात्र माता रूप से निर्दिष्ट किया है और गर्भापहरण की असत् कल्पना तक जाना पड़ा है सो धातृपक्ष में कुछ भी करना न पड़ता और सहज वर्णन आ जाता। ___अब हम सुमेरुकम्पन की घटना पर विचार करें। उसकी असंगति तो स्पष्ट है फिर भी इस घटना को पढ़ने वाले के मन में यह प्रश्न उठ सकता है कि यदि श्रागमों में गर्भापहरण जैसी घटना ने महावीर की जीवनी में स्थान पाया है तो जन्म-काल में अंगुष्ठ मात्र से किए गए सुमेरु के कम्पन जैसी अद्भुत घटना को आगमों में ही स्थान क्यों नहीं दिया है ? इतना ही नहीं बल्कि आगमकाल के अनेक शताब्दियों के बाद रची गई नियुक्ति व चूर्णि जिसमें कि भगवान का जीवन निर्दिष्ट है उसमें भी उस घटना का कोई जिक्र नहीं है। महावीर के पश्चात् कम से कम हजार बारह सौ वर्ष तक में रचे गए और संग्रह किए गए वाङमय में जिस घटना का कोई जिक्र नहीं है वह एकाएक सबसे पहिले 'पउम चरियं' में कैसे आ गई ? यह प्रश्न कम कुतूहलवर्धक नहीं है। हम जब इसके खुलासे के लिए आस-पास के साहित्य को देखते हैं तो हमें किसी हद तक सच्चा जवाब भी मिल . जाता है। वाल्मीकि रामायण में दो प्रसङ्ग हैं–पहिला प्रसङ्ग युद्धकांड में और दूसरा उत्तरकांड में आता है। युद्धकांड में हनुमान के द्वारा समूचा कैलास-शिखर उठाकर रणाङ्गण में-जहाँ कि घायल लक्ष्मण पड़ा था-ले जाकर रखने का वर्णन है जब कि उत्तर-कांड में रावण के द्वारा समूचे हिमालय को हाथ में तौलने का तथा महादेव के द्वारा अङ्गष्ट मात्र से रावण के हाथ में तौले हुए उस हिमालय को दबाने का वर्णन है । इस तरह हरिवंश आदि प्राचीन पुराणों में कृष्ण के द्वारा सात रोज तक गोवर्धन पर्वत को उठाए रखने का भी वर्णन है। पौराणिक व्यास राम और कृष्ण जैसे अवतारी पुरुषों की कथा सुननेवालों का मनोरञ्जन उक्त प्रकार की अद्भुत कल्पनाओं के द्वारा कर रहे हों तब उस वातावरण के बीच रहनेवाले और महावीर का जीवन सुनानेवाले जैन-ग्रन्थकार स्थूल भूमिका वाले अपने साधारण भक्तों का मनोरञ्जन पौराणिक व्यास की तरह ही कल्पित चमत्कारों से करें तो यह मनुष्य-स्वभाव के अनुकूल ही है । मैं समझता हूँ कि अपने-अपने पूज्य पुरुषों की महत्तासूचक घटनाओं के वर्णन की होड़ा-होड़ी में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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