Book Title: Mahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Sohanlal Sogani Jaipur

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Page 8
________________ अनेक कृतियां प्रकाश में पा चुकी हैं किन्तु फिर भी उनका किसी प्रकार का कोई उल्लेख साहित्येतिहास में एक धारा विशेष के रूप में अथवा भाषागत देन के रूप में विद्वानों द्वारा नहीं किया गया है। डा. कस्तूरचन्द कासलीवाल की प्रस्तुत कृति 'महाकवि दोलत राम कासलीवाल व्यक्तित्व एवं कृतित्व' एक ऐसा ही ग्रन्थ है जो पांच दृष्टियों से विशेष रूप से उल्लेखनीय है :--(१) दौलतराम का काव्य (२। उनका गद्य {३) पाठ-सम्गदन और व्याख्या की दृष्टि से (४) काव्य रूप, भाषा, कथानक रूढ़ियाँ और तत्कालीन समाज चित्रण (५१ कवि द्वारा अपनी भाषा विषयक संकेत। यह भ्राश्चर्य की बात ही कही जानी चाहिए कि दौलतरामजी का प्राचामं पं० रामचन्द्र शुक्ल द्वारा उल्लेख किए जाने के बाद भी, ये परवर्ती विद्वानों की दृष्टि से प्रोझल ही रहे। शुक्लजी ने अपने हिन्दी साहित्य के इतिहास में 'गद्य का विकास' (पृ० ११; संदर्भ में पालतराम का नामोल्लय और जनके गध में लिने प्रादिपुराणा को नमूने के रूप में कतिपय पंक्तियाँ उद्धृत की है। इस प्रकार एक हिन्दी गद्य लेखक के रूप में दौलतरामजी साहित्य संसार में थोड़े बहुत परिचित तो ये किन्तु इस रूप में भी उनकी किसी प्रकार की कोई चर्चा नहीं हुई। प्रस्तुत पुस्तक के सुयोग्य संपादक और लेखक डा. कस्तूरचन्द कासलीवाल ने इसमें न केवल कवि की तीन गद्य कृतियों--'पद्मपुराण भाषा', 'मादिपुराण', और 'हरिवंश गरण' के कतिपय अशों को मूल रूप में दिया है, अपितु उमकी सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण रचनाओं, 'जीवन्धर स्वामी.चरित', 'विवेक विलास' पूर्ण रूप में तथा श्रीपाल चरित, परमात्म प्रकाश भाषा दीका एवं अध्यात्म बारहखड़ी का प्रांशिक रूप में समावेश किया है। इससे मद्य लेखक के रूप में भी दौलतराम जी प्रकट होते हैं। हिन्दी गद्य के अनुसन्धित्सुमों के लिए इसमें पर्याप्त सामग्नी है । इनकी भाषा खड़ी बोली मिश्रित ब्रज भाषा है जिसमें यत्र-तत्र हूंढाड़ी की झलक भी दिखाई देती है, किन्तु बहुत ही कम | और निपिचय ही यह मिश्रित भाषा अध्ययन का नवीन बिन्दु उपस्थित करती है । ज और खड़ी बोली मिश्चित ऐसी भाषा के उदाहरण केवल दौलतरामजी की रचनामों में ही नहीं प्राप्त होते, इनसे किचित् पूर्व हुए पं० टोडरमलजी के मोक्षमार्गप्रकाशक की भाषा भी ऐसी ही है। दोनों की भाषा में अंतर इल ना है कि जहाँ टोडरमलजी के मोसमाम प्रकाशक वी भाषा में ब्रजी अपेक्षाकृत प्रधान है, वहां दौलत रामजी की भाषा में ब्रज और खड़ी बोली दोनों का बसवर सा मिश्रण है। ढुंढाड़ी का हल्का पट दोनों की ही भाषामों में है, जो दोनों के इस क्षेत्र के निवासी होने

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