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कुचेरिया, हरसोरा, बोरूदिया इत्यादि जातियों के नाम नगरों से पड़े हैं ।
४ -- सांड, सियाल, नाहर, हिरण, काग, बगुला, गरुड़, मिन्नी, चील, हंसा, मच्छा, बकरा, धाड़ीवाल, धोखा, बागमार, मुर्गीपाल, चामड़, डेढिया, बलाई, तुरकीया, फितूरिया, घोड़ावत आदि जातियों के नाम हँसी ठट्ठे से पड़े हैं ।
५ - पातावत, सिंहावत, बळावत, मालावत, भांडावत, लूनावत, जीवाणी, लालाणी, सुखाणी, रासाणी आदि जातियों के नाम उनके पूर्वज पिता से प्रसिद्ध हुए हैं ।
६ - हथुड़िया, राठौर, सोलंकी, चौहान, पंवार, हाड़ा आदि असली राजपूतों की जो जातियां थीं वे ज्यों की त्यों रह गई ।
७ -- दादमियां, बादामियां, दशखा, हिंगड, संगरिया, कुमट, गुगलिया, गुंदिया, आदि मजाक से पड़े हैं ।
८ - सूरा, शूरमा, रणधीरा, बागमार, योघा, जुजारा, आदि वीरता के कारण हुए हैं ।
यदि इस प्रकार ओसवालों की सब जातियों के केवल नाम ही लिखे जाएँ तो एक स्वतंत्र ग्रंथ बन सकता है और इसमें आश्चर्य करने की कोई बात नहीं है । क्योंकि जब एक वृहत् वृक्ष फलता फूलता है तब उसकी शाखा प्रतिशाखाएँ गिनना अच्छे २ गणित शास्त्रियों के लिए भी दुर्गम हो जाता है । इसी भांति जब " महाजन संघ" का अभ्युदय काल था तब इसके एक-एक गोत्र में इतने नामांकित पुरुष स्वकार्यों से प्रसिद्ध हुए कि उनके नामों से स्वतंत्र सैकड़ों जातियें बन गई जो आज उनके भूत अभ्युदय की साक्षी दे रही हैं। उदाहरणार्थ: - एक आदित्य
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