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उस समय से ३०० वर्षों तक तो इस महाजन संघ का खूब अभ्युदय होता रहा । परन्तु बाद में भवितव्यता के वश उपकेशपुर स्थित महावीर की मूर्ति के वक्षःस्थल पर जो दो ग्रंथियाँ थीं उन्हें किन्हीं नवयुवकों ने सुथार से छिदवा दी, इस कारण देवी का बड़ा भारी कोप हुआ और कई लोग उपकेशपुर का त्याग कर अन्य नगरों में जा बसे वहाँ वे उपकेशपुर से आये हुए होने के कारण उपकेशी के नाम से और बाद में वे ही उपकेशवंशी के नाम से प्रसिद्ध हो गए और वही उपकेश वंश पीछे से शिलालेखों में भी लिखा जाने लगा ।
विक्रम की ग्यारहवीं शताब्दी के आस-पास में जब उपकेशपुर का अपभ्रंश नाम ओसियां होगया तब उस नगर में रहने वालों को भी लोग ओसवाल कहने लग गये । तथापि संस्कृत साहित्य में अथवा मन्दिर मूर्त्तियों के शिलालेखों में उऐश, उकेश एवं उपकेश वंश शब्द ही का प्रयोग हुआ है । आज इस विषय के हजारों शिला लेख प्राप्त हुए हैं उनमें से दो चार शिलालेखों में ओसवंश भी लिखा हुआ है पर यह तेरहवीं शताब्दी का उल्लेख. है । इनके अतिरिक्त सब स्थानों पर उएश, उकेश और उपकेश शब्द का ही प्रयोग दृष्टिगोचर होता है । अतएव यह निश्चय हो जाता है कि इस वंश का मूल नाम तो "महाजन संघ" ही था, बाद में उपकेशपुर के कारण उपकेश वंश हो गया और उपकेशपुर का अपभ्रंश नाम ओसियां होने से वहां के लोग ओसवाल कहलाने लगे ।
इसकी शान्ति आचार्य कक्कसूरि ने करवाई थी। देखो 'जैन जाति महोदय' किताब |
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