Book Title: Mahajan Sangh Ka Itihas
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala

View full book text
Previous | Next

Page 20
________________ ( २० ) भूषित किया गया था। और आज भी यदि इन पूर्वोक्त पदवियों का कहीं अस्तित्व शेष है तो इस महाजन संघ में ही है। यह महाजन संघ का भूतकालीन महत्व बतला रहा है या पतन ? पर प्रकृति का एक यह भी अटल नियम है कि संसार में सदा एक सी स्थिति किसी की न तो रही और न रहती है। यही नियम महाजनों के लिये भी समझ लीजिये। फिर उन महान उपकारी पूर्वाचार्यों पर यह दोष लगाना कि उन्होंने महाजन संघ बना कर बुरा किया, यह सरासर अन्याय और अज्ञानता का दिग्दर्शन नहीं तो और क्या है ? - "यदि आचार्य रत्नप्रभसूरि ने ही "महाजन संघ" की स्थापना की थी तो इसका गच्छ भी एक ही होना चाहिए था परन्तु आज तो हम एक-एक जाति के भी जुदे २ अनेकों गच्छ देखते हैं। जैसे एक ग्राम में एक जाति अमुक गच्छ की उपासक है तो दूसरे प्राम में वही जाति किसी अन्य गच्छ की उपासक तथा तीसरे ग्राम में फिर वही जाति तीसरे गच्छ की उपासक पाई जाती है, ऐसा क्यों?" ___यह बात तो हम ऊपर लिख आये हैं कि भगवान महावीर को सन्तान पूर्व भारत में विहार करती थी और उनका गच्छ उस वक्त सौधर्म गच्छ था, तथा प्रभु पार्श्वनाथ की सन्तान पश्चिम भारत में एवं राजपूताना और मरुधर आदि प्रदेशों में भ्रमण कर अजैनों की शुद्धि कर नये जैन बना एक जैन धर्म का प्रचार करने में संलग्न थी और उनका गच्छ उपकेश गच्छ था ! उपकेशगच्छ का यह कार्य १०० वर्ष तक तो बड़े ही वेग से चलता रहा, यहाँ तक कि मरुधर के अतिरिक्त सिंध, कच्छ, सौरट, अवंती, मेद Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32