Book Title: Mahajan Sangh Ka Itihas
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala

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Page 27
________________ ( २७ ) अग्रणी आचार्य एकत्रित हो तत्क्षण उसका निपटारा कर लेते थे। पर पार्टिएँ बना कर उस मामले को साधारण व्यक्तियों के हाथ तक पहुँचने नहीं देते थे। यही कारण है कि चैत्यवासियों के समय का आपसी खंडन मंडन का कोई भी ग्रंथ दृष्टिगोचर नहीं होता है। इससे यह पाया जाता है कि चैत्यवासियों का संगठन बहुत जोरदार था और इसी कारण से वे क्रियोद्धारकों की लंबी चौड़ी पुकारें होने पर भी १२०० तक अपने अखंड शासन को चला सके, और जब दैवदुर्विपाक से उनके अंदर फूट पड़ गई तो तत्काल उनके पैर उखड़ गये। ____ अस्तु, अब आगे चल कर हम चैत्यवासियों के बाद के क्रियाउद्धारकों के समय का अवलोकन करते हैं तो पता लगता है कि उन (क्रियोद्धारकों) को तो इस बात (वाडाबंधी) की अनिवार्य जरूरत ही थी, क्योंकि वे समुद्र सदृश शासन से निकल अपनी अलग दुकान जमाना चाहते थे। अतः क्रिया की ओट में जिस. जिस गच्छ के श्रावक उनके हाथ लगे उनको ही अपने पक्ष में मिला कर छप्पन मसाले की खिचड़ी बना डाली। उनकी अनेक चालें थीं जिनमें से कतिपय यहां उद्धृत कर दी जाती हैं : १-जिस प्रान्त में पूर्वाचार्य नहीं पहुंचे वहाँ जाकर बिचारे भद्रिक लोगों को अपनी मानी हुई क्रिया करवा कर अपने गच्छ. की छाप उस पर लगा दी। २-किसी श्रावक के बनाए हुए मंदिर को प्रतिष्ठा करवा कर उस पर वासक्षेप डाल दिया और वही उनका श्रावक बन गया। ३-किसी गच्छ के श्रावक के निकाले हुए संघ में साथ गए तो उनको अपनी क्रिया करवा कर अपना श्रावक नियत कर दिया। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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