Book Title: Mahajan Sangh Ka Itihas
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala

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Page 22
________________ ( २२ ) ( १ ) सौधर्मगच्छ, जो वीर संतान (२) उपकेश गच्छ जो पार्श्व संतान थी और इन दोनों गच्छों के आचार्य आपस में मिलजुल कर जैन धर्म का प्रचार किया करते थे। पश्चिम भारत में जो कोई आचार्य नये जैन बनाते वे उन सबको पूर्व स्थापित महाजन संघ में शामिल कर देते थे क्योंकि वे अलग २ टोलियों के बजाय एक संव में ही सभी को संगठित करने में अपना गौरव और शासन का हित समझते थे और यह प्रवृत्ति आखिर नये जैन बनाये तब तक सामान्य विशेष रूप से चलती ही रही । इस बात की पुष्टि आज भी हजारों शिलालेख कर रहे हैं। देखिये क्या रत्नप्रभसूरि आदि उपकेशगच्छ के आचार्यों के बनाये हुए अजैनों को जैन, तथा क्या अन्य गच्छीय आचार्यों के बनाये नये जैन, इन सब के नामों के साथ "उएश-उपकेश आदि शब्दों का प्रयोग शिलालेखों में प्रायः सर्वत्र दृष्टिगोचर होता है और उपकेश वंश जैसा उपकेशपुर से संबंध रखता है वैसा ही उपकेश गच्छ से भी संबंध रखता है। अतएव महाजन संघ का गच्छ एक उपकेश गच्छ ही था और ऐसा होना न्याय-संगत एवं युक्तियुक्त भी है क्योंकि उपकेश गच्छाचार्यों ने ही तो इस महाजन संघ की शुरू में स्थापना की थी और विशेषकर इसी गच्छ के आचार्यों ने इसका ( महाजन संघ का ) सिंचन पोषण और वृद्धि भी की है और आगे चल कर बारहवीं तेरहवीं शताब्दी में जो क्रिया भेद के नये गच्छ पैदा हुए हैं उन्होंने तो महाजन संघ का पोषण नहीं पर उसे छिन्न भिन्न कर उसका शोषण ही किया है। पूर्व जमाने के निःस्पृही जैन निप्रन्थों को न तो गच्छ का ममत्व भाव था और न वे ऐसा करने में शासन का हित ही सम Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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