Book Title: Mahabal Malayasundarino Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 11
________________ (ज) २२॥ यद्यपि न नांजे अम थकी, चिंता मोटी कां य हो ॥ प्री० ॥ तो पण एकांगे रही, समतायें विं हचाय हो ॥ श्री० ॥ कर० ॥ १३ ।। एम सुण्या ध रणी धवे, हृदयें स्त्रीना बोल हो ॥ प्री० ॥ सरिसा मन नदन नला, मधुरा अमृतनें तोल हो॥प्री० ॥ ॥ कर ॥ १४ ॥ कहसे हवे राणी प्रतें, ए थ बी जी ढाल हो ॥ प्री० ॥ कांति कहे धन ते त्रिया, जे लहे पति चित्त चाल हो ॥ प्री० ॥ करण ॥ १५ ॥ ॥दोहा॥ ॥ वयण सुणी उग जर, बोल्यो तव नूपाल ॥ चिं ता कारण चित्तधरी, सुण सुंदरी सुकुमाल ॥ १ ॥ जे तें पूज्या विविध परें, नहीं तेहनी मुज चिंत ॥ शुद्ध स्वनावे सर्वथा, तिण वातें निश्चिंत ॥ ५ ॥ ए मुज चिंता उमटी, अकस्मात बलवंत ॥ मूल थकी मामी कहूं, सुपरें सवि विरतंत ॥३॥ ॥ ढाल त्रीजी ॥ धिगधिग विषय विटंबना ॥ए देशी॥ ॥ण पुरमां व्यवहारिया, निवसे डे गुणवंतो रे॥ लोननंदी लोनाकरा, बे ना धनवंतो रे ॥ १॥ धि गधिग लोन विटंबना, लोने लक्षण जाय रे, लोने नर पीमा लहे, लोने पुरगति थाय रे ॥ धि०॥२॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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