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( १५ )
तातने बोवा ॥ करता ढील न कांय रे, पुरमांडे फरे ॥ जोवे जुगति बनाय रे, बंधण तोवा ॥ पण नावे को य दाय रे, तातने बोमवा ॥ १ ॥ गाम नगर पुर क aah रे, जमतो नासे रे आम || जे अम तातने बो ha रे, तो मुंह माग्या धुं दाम रे ॥ ता० ॥ २ ॥ व चन सुणी उव्या तिसे रे, विविध वैद्यना पुत्र ॥ सिद्ध बुद्ध at धरा रे, जणता निज निज सूत्र रे ॥ ता ॥ ३ ॥ केइ जंगम के जोगीधा रे, केइ तापस अवधूत ॥ जाप जयंता विया रे, चाढी शीस विनूत रे ॥ ता० ॥ ४ ॥ कै कापिल के कापमी रे, के सन्यासी जक्त ॥ के बांजण वली वेदीआ रे, कै ध्याता शिव शक्ति रे || ता० ॥ ५ ॥ ब्रह्मचारी केता मिल्या रे, केताइक श्रीपा त ॥ के निरंजन पंथना रे, केश्क चरक कहात रे ॥ ता० ॥ ६ ॥ केइ दिगंबर दोमीया रे, जरकाने जगवंत ॥ के त्रिदंगी मुंदिया रे, आगल कीध महंत रे ॥ ता० ॥ ७ ॥ राउल रंगे उमट्या रे, दोड्या केइ दरवेश || जगने फंदे पारुवा रे, करता नवनव वेश रे ॥ ता० ॥ ८ ॥ इष्टधरा अभिचारका रे, जतन करावे को मि ॥ श्रावी विध विध उपचरे रे, करता होगा दोन रे ॥ वा ॥ ए ॥ एक कहे आहुति दियो रे, बलियो एक
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