Book Title: Mahabal Malayasundarino Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 10
________________ म ताप हो ॥ प्री० ॥ मौन सी केणे कारणे, चिं तातुर थर आप हो ॥ प्री० करत ॥५॥ केणे तु म कथन की नहीं, कुणे उहव्या महाराय हो । प्री० ॥ के कांता को दिल वसी, चिंतो तास उपा य हो ॥ प्री० ॥ कर ॥ ६ ॥ के कोइ अरिअण जागी, चिंता पेठी तास हो ॥ प्री० ॥ के जोगी जंगम मल्यो, कीधा तेणे उदास हो ॥ प्री० ॥ क र० ॥ ७॥ के को बाधा उपनी, अंगे जीवन प्रा ण हो ॥ प्री० ॥ के इणे वेला सांजरयो, अरिक्षण वयरी पुराण हो ॥ प्री० ॥ कर० ॥ ७॥ कवण अ डे ते राजी, जे बांधे तुमसुं तेग हो ॥ प्री० ॥ पं चायण गिरि गाजते, मृग नासें करे वेग हो ॥ प्री० ॥ कर ॥ ए॥ के केणे पुरजने नाखीजे, अणहंतो श्रम दोष हो ॥ प्री० ॥ के किणदिक अपहरि लीजे, नवलो लखमी कोश हो ॥ प्री० ॥ कर ॥ १० ॥ के मनमान्यो साजरयो, परदेशी को मित्त हो ॥ प्री० ॥ सुरत समयनुं बोलहुँ, के खटक्यो को ६ चित्त हो ॥ प्री ॥ कर ॥ ११॥ के मारग सं बेगनो, नेदाणुं सरवंग हो ॥ प्री० ॥ मनमेलु साचुं कहो, श्राशय एह अनंग हो ॥ प्री० ॥ कर० ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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