Book Title: Mahabal Malayasundarino Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 12
________________ बांधव नेह धरे घj, मांहो मांहे बेहो रे, जेद न पामे ए कदा, खीर नीर परें तेहो रे॥ धि० ॥ ३॥ लोनाकरने सुत थयो, नाम दी गुणवर्मा रे ॥ लोजनंदी परण्यो फरी, पण सुत नही पूरव का रे ॥ धि० ॥४॥ एक दिवस बेठा मली, हाटें वे हु जेवारो रे ॥ परदेशी एक पंथीयो, थायो तेथ तिवारो रे ॥ धि ॥ ५॥ जज प्रकृति उन्नो रह्यो, तेहने को न पिळगणे रे ॥ दीगे शेवें एकलो, उत्तम पुरुष प्रमाणे रे ॥ धि० ॥६॥ बोलाव्यो गौरव पणे, थागत स्वागत कीधो रे॥ आदरसुं आगल नलो, श्रासण बेसण दीधो रे ॥ धिम् ॥ ७ ॥ पू शेठ किं हां रहो, किम श्राव्या शण गामे रे ॥ जात किसी जे तुमतणी, नीकलिया किणे कामे रे ॥ धिण् ॥ ज॥ कहे पंथी दत्रि अबुं, परदेशी असहायो रे ॥ देश देशावर देखतो, फरतो हुँतो शहांबायो रे॥धि०॥ ए" शेठे निजघर तेमी, नोजन नगत नलेरी रे ॥ कीधी वली के दिन लगें, राख्यो जातो घेरी रे ॥ धि ॥ १० ॥ विश्वासे हलि मलि रह्यो, अंतर कांश न राखे रे ॥ देश विदेश तणी घणी, वात जली न सी लाखे रे ॥ धिण ११॥ अन्य दिवस कहे पंथी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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