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रूपरेखा प्रस्तुत की है । जिसके अन्तर्गत राजनीतिक धार्मिक और सामाजिक पृष्ठ भूमि को स्पष्ट किया है। इसी सांस्कृतिक पृष्ठभूमि में हिन्दी जैन साहित्य का निर्माण हुमा है।
द्वितीय परिवर्त में हिम्दी जैन साहित्य के प्रादिकाल की चर्चा की गई है। इस संदर्भ में हमने अपभ्रंश भाषा और साहित्य को भी प्रवृत्तियों की वृष्टि से समाहित किया है। यह काल दो भागों में विभक्त किश है - साहित्यिक प्रपभ्रंश और अपभ्रंश परवर्ती लोक भाषा या प्रारम्भिक हिन्दी रचनाएं प्रथम वर्ग के स्वयंभूदेव, पुष्पदंत भादि कवि हैं और द्वितीय वर्ग में शालिभद्र सूरि जिन पद्मसूरि मादि विद्वान उल्लेखनीय है । भाषागत विशेषताओ का भी संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया है ।
are भाषा और साहित्य ने हिन्दी के श्रादिकाल और मध्यकालको बहुत प्रभावित किया है। उनकी सहज-सरल भाषा, स्ववाभाविक वर्णन और सांस्कृतिक धरातल पर व्याख्यायित दार्शनिक सिद्धांतों ने हिन्दी जैन साहित्य की समग्र कृतियों पर अमिट छाप छोड़ी है । भाषिक परिवर्तन भी इन ग्रन्थो में सहजता पूर्वक देखा जा सकता है । हिन्दी के विकास की यह प्राद्य कड़ी है। इसलिए अपभ्रंश की कतिपय मुख्य विशेषताओ की प्रोर दृष्टिपात करना आवश्यक हो जाता है ।
तृतीय परिवर्त में मध्यकालीन हिन्दी काव्य की प्रवृत्तियों पर विचार किया गया है । इतिहासकारों ने हिन्दी साहित्य के मध्यकाल को पूर्व- मध्यकाल (भक्तिकाल ) और उत्तरमध्यकाल ( रीतिकाल ) के रूप में वर्गीकृत करने का प्रयत्न किया है। चूकि भक्तिकाल मे निर्गुण और सगुण विचारधाराये समानान्तर रूप प्रवाहित होती रही है तथा रीतिकाल में भी भक्ति सम्बन्धी रचनायें उपलब्ध होती है | अतः हमने इसका धारागत विभाजन न करके काव्य प्रवृत्यात्मक वर्गीकरण करना कि सार्थक माना । जैन साहित्य का उपर्युक्त विभाजन मौर भी संभव नही क्योकि वहां भक्ति से सम्बद्ध अनेक धारायें मध्यकाल के प्रारम्भ से लेकर अन्त तक निर्वाध रूप से प्रवाहित होती रही हैं। इतना ही नहीं, भक्ति का काव्य स्रोत जैन श्राचार्यो और कवियों की लेखनी से हिन्दी के भाविकाल मे भी प्रवाहित हुमा है । अतः हिन्दी के मध्ययुगीन जैन काव्यो का वर्गीकरण काव्यात्मक न करके प्रवृत्या त्मक करना अधिक उपयुक्त समझा। इस वर्गीकरण में प्रधान और गीरण दोनों प्रकार की प्रवृत्तियो का प्राकलन हो जाता है ।
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जैन कवियो और प्राचार्यों ने मध्यकाल की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि में पेठकर ute साहित्यिक विधामो को प्रस्फुटित किया है । उनकी इस अभिव्यक्ति को हमने निम्नांकित काव्य रूपों में वर्गीकृत किया है
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