Book Title: Lokprakash Part 02
Author(s): Padmachandrasuri
Publisher: Nirgranth Sahitya Prakashan Sangh

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Page 7
________________ (vi) आचार्य प्रवर श्रीमद् विजय पदम चन्द्र सूरीश्वर जी महाराज सा० द्वारा हिन्दी भाषा में किया गया भाषानुवाद आपके हाथों में है । सम्पूर्ण ग्रन्थ पाँच भागों में प्रकाशित हो चुका है । जिज्ञासु पाठक वर्य अनुकूलता अनुसार वाचन कर श्रेयस्कर पथ के पथिक बने । सर्व प्रथम परम उपकारी आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय पद्म चन्द्र सूरीश्वर जी म० सा० के चरण कमलों में वंदन करता हूँ कि उन्होने इस ग्रन्थ का सरल हिन्दी भाषानुवाद करके परम उपकार किया है। ग्रन्थ प्रकाशन में बाल मुनि श्री युग चन्द्र विजय जी म० सा० ने तथा सभी ने प्रूफ संशोधन एवं हस्तलिपि लेखन जैसे दुरूह कार्य का उत्तरदायित्व वहन करते हुए उपकार किया है। श्री नगीन चन्द जैन (नगीन प्रकाशन, मेरठ) तथा सुभाष जैन (प्रिन्टोनिक्स) वैस्टर्न कचहरी रोड, मेरठ वालों का आभार व्यक्त करता हूँ, जिन्होंने अपने आवश्यक मुद्रण क्रार्यों को स्थगित रखते हुए इस ग्रन्थ के प्रकाशन कार्य को वरीयता प्रदान की । 'ज्ञानावरणीय' क्षेत्र में अपनी लक्ष्मी का सदुपयोग करते हुए जिन दानवीर श्रेष्ठि श्रीमन्तों ने ' श्रुतयज्ञ' में सहयोग प्रदान किया है उन सभी के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ। अन्त में उन सभी ज्ञात-अज्ञात महानुभावों को धन्यवाद देता हूँ, जिन्होनें तन, मन, धन, एवं भाव मात्र से भी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में किंचित मात्र सहयोग प्रदान किया है । . . ग्रन्थ प्रकाशन में जो भी मति दोष अथवा दृष्टि दोष के कारण त्रुटि रह गई है, वह हमारे प्रमादवश है । सुविज्ञ पाठक वृन्द भूल सुधार कर, चिन्तन एवं मनन पूर्वक पढ़ें। यही शुभ अभिलाषा है । प्रो० जे०पी० सिंह जैन एम०ए०, एल एल एम मंत्री निर्ग्रन्थ साहित्य प्रकाशन संघ

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