Book Title: Lokprakash
Author(s): Vinayvijay, 
Publisher: Sanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad

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Page 4
________________ पढम नाणं तओ दया०॥ नाणं पयासग मोहओ-तबो संजमो अगुनिधरो॥ ___ आ ज अभिप्राये ज्ञानने आदिमां का छे, पवा ज्ञाननी आवश्यकताने ममजता शास्त्रकारो फरमावे छे के-त्रीजा लोचन समान, अलौकिक सूर्य समान, आश्चर्यकारी घरेणा समान, चोर न चौरे सेवा धन समान सम्यगशान छे. हेच पदार्थोथी निवृनि अने उपादेय पदार्थोमा प्रवृत्ति कगवनार पण ते ज ज्ञान छे. कृत्याकृत्यादिनी पिछाण-चारित्रनी माधना-चिननी निर्मळता-कपायनो अय पण पूर्वोक्त ज्ञानी ज की झकाय छ. माटे ज तेने सूर्य-बम विगैरेनी 'उपमा आपी छ. अन्यत्र एम पण कमु छ के-पीपमममुद्रोत्थमित्यादि ।। शानथी पवित्र बनेली क्रिया मोनाना घडा जेवी कही छे. नथा ज्ञानपूर्वक क्रियाराधनधी भयेलो कमेनय दग्धमंडूकर्णनी जैया कन्या छ. माज ज्ञानविनानी क्रिया खद्योत प्रकाशतुल्य कही छे. अने मानने अपनाए सूर्यतुल्य कहुं छे, खम मनुप्यत्व पण आवाज ज्ञानथी मेळवी शकाय छे, तेथी आवाशानने धारण करनार प्रमण विगैरेनी ऊर्ध्वगति शास्त्रमा दर्शाची छे. एम होवाथी अनेक अपेक्षाओने ध्यानमा लइने पूर्वाचार्य भगवंतोय शानना उत्कर्षने चारित्र कामु छे. एटले ज्यां ज्ञाननो परिपाक होय त्यां अवश्य चारित्र होय ज, माटेज कई छे के.'ज्ञानस्य फलं विरतिः' ॥ आवा ज्ञानकल्लोलश्री भीजायेला मनपाला जीवो मोहराजानो मुखथी पराजय करी शके छ. मिथ्यात्वरूपी पर्वनना पक्षने छेदी नांखनार ज्ञानरूपी वसथी शोभायमान योगी-निर्भयपणे आत्मानंदरूपी नंबनधनमा शक्रनी माफक क्रीडा करे छे. आवा ज्ञानना बले ज-कर्मोदयकाले पण शानीने वेश धतो नथी, एम तो गीमा पण कबूल करे छे. जुओ-ज्ञानिनोऽझानिश्चात्र० || नार्थ पण तेषा मानीने ज का छे. जुओ ते धन्ना सुकयत्या, जेसि नियतत्तयोहरुइजाया । जे तत्तबोहभोई, ते पुझा मुभवाणं ॥ १ ॥ इत्यादि-- एकांत पक्षवालाओ पण पोनाना अभिप्रायानुसारे ज्ञानने तो मुक्तिना साधनरूपे स्वीकार ज छे. जुओ 'ऋते ज्ञानान्न मुक्तिः ॥ (पंचविंशतितत्वज्ञः मुच्यते नात्र संशयः ।। ज्ञानामिः सर्वकर्माणिः ।। परंतु भिन्नता स्यां ज जणाय छ के तेओ अपेक्षा शानना अभावे शान थी ज मुक्ति माने के.

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