Book Title: Lokprakash
Author(s): Vinayvijay, 
Publisher: Sanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad

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Page 9
________________ द्रव्यलोकप्रकाशना ११ विभागो छे जे सर्गना नाभथी कला के. ग्रंथकारना परिचय परस्बे पटलु जागी सकाय छे के सेओलीना तेजपाल नामना पिता अने राजश्री नामना मातुश्री हवा. स्वोपज्ञवृत्ति समेत श्री हैमलघुप्रक्रिया विगेरे जोवाथी तेओश्री वैयाकरणशिरोमणि हता एम कही शकाय छे. शांतसुधारस मंथ, अनेक स्तोत्रो तथा नयकर्णिका विगेरे तेओभीनी अपूर्व कृतिओ संस्कृतकाव्यरचनामां तथा नयप्रमाणादिनिरूपणमां पण तेमनी कुशळता जणावे छे. श्रीकल्पसूत्री सुबोधका टीका पण तेओश्रीए बनावी छे. श्रीपाल रास - पुण्यप्रकाश तेओश्री स्तवन विगेरे जोतां तेओश्रीनी गुर्जर कान्यकुशळता पण सात्रीत थाय छे. अपूर्व तत्वबोधशाली हत्ता, एम आ एकज ग्रंथ कही शके तेम छे. ग्रंथकारनी पट्टपरंपराश्रीहरिविजयसूरि वाचकविः उपाध्याय कीर्तिविजय गणि L लाभवि० जीतवि० उ० विनयवि० गणि नयवि० पद्मवि० उ० यशोवि० गणि श्रीपालरासनो अधुरो भाग पूरी करवाने प्रथकारे समर्थ विद्वान् श्रीमान उपाध्यायजी यशोविजयजीने भलामण करी जेथी ते महापुरुषे महागंभीर अर्थ - वाळा चोथा खंडसमेत रास पूर्ण कर्यो. ए उपरथी बने महात्माओ समकालीन हता एम जाणी शकाय छे. शंरमां मंथकार काळधर्म पाया छे. आ मंथनो अभ्यास करती वखते केटलेक स्थळे संस्कृतना बोधवाला जीवाने संक्षेप होवाने कारणे समजवामां मुश्केली नवे छे. बळी केटलेक स्थले स्पष्टीकरणनी खास आवश्यकता दृष्टिगोचर थाय छे. तथा संस्कृतना अजाण जीवोने स्पष्ट अर्थनो बोध-मूलमंथधी यह शकतो नथी. विगेरे कारणोने ध्यानमां लइने सर्वतंत्रस्वतंत्र - तपोगच्छाधिपति शासनसम्राट् -

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