Book Title: Lokprakash
Author(s): Vinayvijay, 
Publisher: Sanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad

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Page 7
________________ असंख्य प्रदेशी, दरेक प्रदेशे रहेली अनंती ज्ञानादि पर्यायो, दरेक आत्मप्रदेशे चोंटेली अनंत परमाणुमय अनंती कर्म वर्गणाओनो दरेक परमाणु-कये टाइमे केवा परि वर्तनने पामे के ? बंध- उदय उदीरणा-सत्ता अबाधाकाल- स्थितिघात - रसधातगुणश्रेणीतामं निषेचनावरणकरणनिरी-कप-छेद - ताप विगेरेनुं अपूर्व संपूर्ण स्वरूप अलौकिक तत्त्वज्ञान - कहो तो खरा के जैनेन्द्रागमो (जैनमाहिरा ) सिवाय अन्यत्र क्यों छ ? आवाज आशयने लहने एक महापुरुष शास्त्राभ्यास विगेरे सात वानां मने भवोभव मन्त्रजो एम कट्टेल छे एम पहेलां पण कयुं छ. अढार हजार शीलांगरथ आदिनी संख्याने ध्यानमां लड़ने गणधर भगवने जेओना १८ हज़ार आदि श्रमणा बमणा पदो बनाव्या छे, ते पवित्र आगमो कालादिक दोषे करी पूर्व स्थितिने जाळवी शक्या नथी एम देखातुं प्रमाण पण साश्रीती करावी शके तेम हे. तो पण जैनसाहित्य जेटलुं विशाल अने सुसंगत स्वरूपमा हाल मोजुद छे तेलुं भाग्ये ज अन्य कोई दर्शननुं साहित्य हशे तत्वज्ञाननापिपासु बुद्धिशाळी वर्गने पण जैनसाहित्यज-संतोष पसाउद, ए वातमां चेमत होय ज नही. कुदरतनो नियम एवो के जेना पायो - भीन- पाटडा मजबूत होय ते ज महेल टकाउ कही शकाय, तेस जैनसाहित्यरूपी महेलना बाना मजबूत होवाथी ते विजयवंत वर्से द्वे, अने वर्तशे जण वानामां पाया समान निर्दोष शांतरससिंधु श्री वीतराग देव जाणवा. भींत सरखा कंचनकामिनीना त्यागी - निरभिलाषि शुद्ध गुरु समजवा. तथा पाटडा समान - अविच्छिन्न प्रभावशाली त्रिपुटी ( कप, ताप, छेद ) शुद्ध क्ष्यामय धर्म जागवो. एज कारणथी जेओ जैनसाहित्यमा आंशिक बोध धरावे छे, एवा ते पाश्चिमात्य विद्वानो पण जैन साहित्यनेज मुक्तकंठे प्रशंसे छे, एम अनेक आधारोद्वारा कही शकाय तेम छ. 1 जैनसाहित्यमा बनायेला एक पण पढ़ार्थनो संपूर्ण संगीन योध- तेन्हाथी बीजां तमाम पदार्थोंने जाण्या शिवाय नज थड़ शके माटेज क के - जे एगं जाणह से सवं जाणइ० || एको भावः सर्वथा येन दृष्टः सर्वे भावाः सर्वथा तेन ष्टष्टाः ० ॥ इत्यादि । एज कारणची सर्वे सूत्रांना यथार्थ अर्थो गुरुद्वाराज आणी शकाच. जुओ - सब्बे सुतथ्था गुरुमहहीणा || स्वतंत्र अभ्यासथी तो fauta बोध थाय, तेथी संसारभ्रमण वधे, माटेज व्यवहारसूत्रमां जीनत्र्यवहारने अनुमारे सूत्र भणाववाने दीक्षापर्यायनो नियतकाल जणाच्यो छ.

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