Book Title: Lok
Author(s): Narayanlal Kachara
Publisher: Narayanlal Kachara

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Page 7
________________ बीच बहती हैं। भारत में गंगा-सिन्धु, हेमवत में रोहित - रोहितास्या, हरि में हरित-हरिकांता, विदेह में सीता-सीतोदा, रम्यक में नारी-नरकान्ता, हैरण्यवत में सुवर्णकूला-रूप्यकूला और ऐरावत् में रक्ता-रक्तोदा नदियां बहती हैं। भरतक्षेत्र 526 6/19 योजन विस्तारवाला है। विदेह क्षेत्र पर्यन्त के पर्वत और क्षेत्र भरतक्षेत्र से दूने-दूने विस्तार वाले हैं। भरत क्षेत्र तीन और लवण समुद्र तथा एक ओर हिमवान् पर्वत के बीच में भरत क्षेत्र है। गंगा, सिंधु और विजयार्द्ध पर्वतों से विभक्त होकर इसके छह खण्ड हो जाते हैं। विजयार्द्ध पर्वत 50 योजन विस्तृत, 25 योजन ऊंचा, 6 1/4 योजन गहरा है एवं दोनों छोरों में पूर्व पश्चिम के लवण समुद्र को स्पर्श करता है। इसी पर्वत से गंगा और सिंधु निकली हैं। विजयार्द्ध पर्वत में सुन्दर लक्षणों से युक्त विद्याधर धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष पुरूषार्थों को करते हुए रहते हैं। यहाँ के निवासी भी यद्यपि भरत क्षेत्र की तरह षटकर्म से ही आजीविका करते हैं, किंतु प्रज्ञप्ति आदि विधाओं को धारण करने के कारण विद्याधर कहे जाते हैं। विजयार्द्ध पर्वत में ऊँचाई की ओर विस्तृत व्यन्तर श्रेणियाँ है जिनमें उत्तम दिव्य रूप के धारी सौधर्म इन्द्र के वाहन जाति के व्यन्तर देव रहते हैं। पर्वत के शिखर पर नौ कूट स्थित हैं। इन कूटों में उत्तम विद्याधर मनुष्य कामदेव के समान बहुत प्रकार की विद्याओं में संयुक्त हमेशा ही छह कर्मों से सहित हैं। इन विद्याधरों की स्त्रियाँ अप्सराओं के सदृश, दिव्य लावण्य से रमणीय और बहुत प्रकार की विद्याओं से समृद्ध हैं। यहाँ के मनुष्य अनेक प्रकार की कुल विद्या, जाति विद्या और साधित विद्याओं के प्रसाद से हमेशा ही अनेक प्रकार के सुख का अनुभव करते रहते हैं। R. Raktoda R.Rakta MK REGION Arya Khand Lavana Ocean Mt. Vijayarth Mt. Vijayarth Lavana Ocean AIRAWAT MK MK Mt. Shikhari R Rupakula R.Suvarnakula HERANYAVAT REGION Mt. Rukmil R.Narakanta R.Nari RAMYAK REGION Mt. Neel REGION VIDEH R. Sita R. Sitada west Vide A. Kuru Sumery Sumeru East Viden Mt. Nishadh HARI REGION R.Harikanta R. Harit Mt. Mahahimvat HEMVAT REGION R. Rohitasya R. Rohita Lavana Ocean MK MK Mt. Himvat BHARAT REGION Mt. Vijayarth Mt. Vijayarth Arya Khand Lavana Ocean R. Sindhul R. Ganga

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