Book Title: Lok
Author(s): Narayanlal Kachara
Publisher: Narayanlal Kachara

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Page 1
________________ लोक डॉ. नारायण लाल कछारा जैन दर्शन में लोक लोक' का निश्चित आकार एक शराव उल्टा रखकर अनन्त - असीम आकाशके बहुमध्यभाग में स्थित सान्त ससीम माना गया है। लोक सुप्रतिष्ठित संस्थान वाला है अर्थात् त्रिशरावसंपुटाकार है उस पर एक शराव सीधा और फिर उस पर एक शराव उल्टा रखने पर त्रिशराव संपुट की आकृति बनती है यही लोक की आकृति है। यह आकार में नीचे से विस्तीर्ण, मध्य में संकरा और उपर विशाल एवं अंत में संकरा होता है। अधोलोक पर्यंक संस्थान वाला या तप्रसंस्थान वाला है। मध्यलोक झल्लरी, वरव्रज एवं उर्ध्व किए गये मृदंग के आकार वाला बताया गया है। इस मान्यता के अनुसार लोक की ऊंचाई 14 राजू हैं। अधोलोक कुछ कम सात राजू विस्तीर्ण है । तिर्यकलोक एक राजू ब्रह्मलोक 5 राजू और लोकान्त के पास एक राजू विस्तीर्ण है जैसा कि चित्र में दिखाया गया है। Aloka Aloka Upper Loka (Mridanga Shape) Middle Loka 1 Region of Mobile Beings (Trasa Nadi) Lower Loka Aloka Alokal I लोक खड़े-खड़े मंथन करते हुए ऐसे पुरूष के आकार वाला है। जिसके पैर फैले हुए हैं, दोनों हाथ कटि भाग पर स्थित हैं। लोक पुरूष के दोनों पैरों के स्थान में अधोलोक है। उसके कटिस्थानीय ज्योतिश्चक्र है। उसकी कोहनी स्थानीय ब्रह्मलोक है और मस्तक का तिलक सिद्धशिला है अलोक का संस्थान शुषिरगोलक है वैसा गोला जो मध्य में पोलारयुक्त है लोक की ऊंचाई चवदह राजु है। अधोलोक कुछ कम सात राजू विस्तीर्ण है । तिर्यक्लोक एक राजू, ब्रह्मलोक पाँच राजू और लोकांत के पास एक राजू विस्तीर्ण है। स्वयंभू रमण पूर्व से पश्चिम वेदिकांत तक एक राजू परिमाण है। लोक का आयतन 343 धनराजू माना गया है। (एक राजू का मान लगभग 1.15x1021 मील आंका गया हैं ।)

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