Book Title: Lok
Author(s): Narayanlal Kachara
Publisher: Narayanlal Kachara

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Page 9
________________ पर मेरू की चौड़ाई 10000 योजन और परिधि का परिमाण लगभग 31623 योजन है। मेरू पर्वत की ऊंचाई 99000 योजन है और मुख 1000 योजन परिणाम है। मेरू पर्वत नीचे से 61 हजार योजन पर्यन्त अनेक वर्ण वाला है, इसके उपर पूरा सदृश वर्ण का है। सुमेरू पर्वत के तीन स्तर पर तीन वन-नन्दन वन, सौमन वन और पाण्डुक वन हैं जिनमें कई कूट हैं। नन्दन वन के कूट में बलभद्र नाम के व्यन्तर देव रहते हैं। काल भेद भरत और ऐरावत क्षेत्र में जीवों के अनुभव आदि को छह कालों से युक्त उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी के द्वारा वृद्धि तथा न्यूनता होती रहती है। अवसर्पिणी के छह भेद (आरा) है - (1) सुषमा-सुषमा (2) सुषमा (3) सुषमा-दुःषमा (4) दुःषमा-सुषमा (5) दुःषमा और (6) अतिदुःषमा। इसी प्रकार उत्सर्पिणी के भी अति दुःषमा आदि को लेकर छह भेद हैं (देखें चित्र 6.7)। असंख्यात अवसर्पिणी बीत जाने पर एक हुण्डावसर्पिणी काल होता है। अभी हुण्डावसर्पिणी काल चल रहा है। Sukhma - Sukhma Sukhma-Sukhma Avasarpini Kala Utsarpini Kala Sukhma Sukhma Sukhma-Dukhma Sukhma - Dukhma G DukhmaSukhma /G/ Dukhma Sukhma Dukhma Dukhma Duka Dultima Dukhma Dukhma अवसर्पिणी काल में समय बीतने के साथ-साथ मनुष्यों का आयुष्य, ऊंचाई और पृष्ठ-अस्थि की संख्या में हानि होती रहती है जैसा कि सारिणी-1 में दिखाया गया है। उत्सर्पिणी काल में आयु ऊंचाई पृष्ठ-अस्थि-संख्या आदि में क्रमशः वृद्धि होती है। सारिणी 1 : प्रत्येक आरे के प्रारम्भ में आयुष्य आदि का मान आरा-क्रमांक आयुष्य ऊंचाई पृष्ठ-अस्थि-संख्या 256 128 64 3 पल्योपम 2 पल्योपम 1 पल्योपम 1 क्रोड-पूर्व 130 वर्ष 20 वर्ष दिगम्बर-परम्परा के अनुसार 6000 धनुष्य 4000 धनुष्य 2000 धनुष्य 500 (525)* धनुष्य 7 हाथ 1 (3-31/2)* हाथ

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