Book Title: Leshya Dwara Vyaktitva Rupantaran
Author(s): Shanta Jain
Publisher: Z_Jaganmohanlal_Pandit_Sadhuwad_Granth_012026.pdf

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Page 3
________________ लेश्या द्वारा व्यक्तित्व रूपान्तरण १५७ सारणी ३. लेश्या-वर्णन के विविध प्रकार या अनुयोगद्धार वर्ण वर्ण गंध स्पर्श लक्षण गति - १. उत्तराध्ययन २. प्रज्ञापना ३. अकलंक और नेमचन्द्र नाम निर्देश वर्ण रस रस गंध स्पर्श स्पर्शन परिणाम परिणाम परिणाम लक्षण गति गति आयुष्य काल स्थिति अन्तर स्थान स्थान अल्पबहुत्व अल्पबहुत्व प्रदेश वर्गणा अवगाह उत्पाद संख्या उद्वर्तना संक्रमण ज्ञान कर्म दर्शन (१-४ प्रशस्तादि चार स्वामित्व विकल्प ) साधन ( औदयिक ) भाव सारणी ४ से अनेक प्रकार की सूचनायें प्राप्त होती हैं। तेजस और पद्म लेश्या के वर्ण के विषय में श्वेतावर और दिगम्बर परम्पराओं में भिन्नता है। जहाँ आगम इन्हें क्रमशः लाल ( बालसूर्य ) और पीला ( हल्दी ) रंग का मानते हैं, वहाँ अकलंक आदि आचार्य इन्हें क्रमशः स्वर्ण (पीला) एवं पद्म (लाल) मानते हैं । यह मान्यता आधुनिक दृष्टि से. वर्ण के तरंगदैर्ध्य के आधार पर भी उचित है। गेलडा ने इसे तर्कसंगत रूप में ही प्रस्तुत किया है। अत: इन लेश्याओं से सम्बन्धित विवरणों को इसी रूप में लेना चाहिये। वस्तुतः इन विवरणों में मात्र प्रभावों की कोटि में ही विशेषता है। पीतिमा एवं लालिमा, रितुओं के परिवर्तन के समय, जगत में वासन्तो क्रान्ति एवं विकास की प्रतीक है।'• सामान्य जन के लिये ये वर्ण प्राणशक्ति, जोवनशक्ति, एवं संसार के उद्भव व विकास की कामना एवं प्रवृत्ति के प्रेरक हैं। ये भौतिक जीवन की नवता के प्रतीक हैं। परन्तु, जैसे ये वर्ण मौतिक क्रान्ति के प्रतीक हैं, उसी प्रकार ये आध्यात्मिक क्रान्ति के भी प्रतीक माने गये हैं। बौद्ध भिक्षुओं के एवं सन्यासियों के पीत एवं गरिक वस्त्रों की परम्परा उनके उत्कृष्ट अध्यात्म विकास की प्रेरणा मानी गई है। वैज्ञानिक एवं शास्त्रीय दृष्टि से पीला रंग त्रिकोणी मणिपुर चक्र, अग्नितत्व और मानसिक स्थिरता एवं प्राणशक्ति का प्रतीक है, वहीं लाल रंग दृढ़ता, स्थिरता एवं उत्साह का - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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