Book Title: Lekh Sangraha Part 01
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Rander Road Jain Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ अध्याय पृ. सं. 168 171 172 29. वाचक प्रमोदचन्द्र भास कर्मसिंह 30. सामला पार्श्वनाथ विज्ञप्ति 31. नाटिकानुकारि षड्भाषामयं पत्रम् महो. रूपचन्द्रगणि 32. श्री जिनमहेन्द्रसूरिजी को प्रेषित प्राकृत भाषा का विज्ञप्ति-पत्र 33. उ. चारित्रनन्दी की गुरुपरम्परा एवं रचनाएँ 34. चतुर्विंशति - जिन - स्तोत्राणि देवभद्रसूरि 35. चत्वारः जिनस्तवाः रत्नशेखरसूरि 36. षडभाषामय श्रीऋषभप्रभुस्तव के कर्ता श्री जिनप्रभसूरि हैं 37. अञ्चलगच्छीय श्री जयकेसरीसूरि भास 38. महोपाध्याय अनन्तहंसगणि स्वाध्याय कनकमाणिक्यगणि 39. श्री विजयदानसूरि भास भीमकवि 40. श्री हीरविजयसूरि सज्झाय विशालकीर्ति शिष्य 41. नेमिनाथ भासद्वय सिद्धिविजय 42. श्री विजयदेवसूरि भासद्वय कनकमुक्तिगणि 43. चतुर्दशस्वरस्थापनवादस्थलम् श्री श्रीवल्लभोपाध्याय 44. कल्पसूत्र लेखन-प्रशस्ति मुनिसोमगणि 45. श्री धरणविहार चतुर्मुखस्तवन विशालराज शिष्य 46. छन्दोनुशासनम् जिनेश्वरसूरि 47. निर्णय प्रभाकर : एक परिचय बालचन्द्राचार्य एवं ऋद्धिसागरोपाध्याय 48. मेदपाटदेश-तीर्थमाला हरिकलश यति 49. खेड़ से संबंधित प्राचीन जैन लेख एवं उल्लेख 50. आबू के विष्णु मंदिर का एक लेख 51. जीर्णोद्धार का एक महत्वपूर्ण शिलालेख 52. राजस्थान में पार्श्वनाथ के तीर्थ स्थान 53. माण्डवगढ़ के पेथड़शाह ने कितने जिन मंदिर बनवाये? 54. भोपालगढ़ (बड़लू) के जैन मंदिर 55. आर्षभी विद्या : परिचय 56. श्रावक विधि रास गुणसुन्दरसूरि 57. भक्तामरस्तोत्र पादपूर्ति आदिनाथ स्तोत्रम् विवेकचन्द्रसूरि 58. द्वादशांगी पदप्रमाण कुलकम् श्रीजिनभद्रसूरि 59. सर्वजिन चउतीस अतिसय वीनती 60. श्री पार्श्वनाथ स्तोत्रम् जिनराजसूरि 180 188 194 209 222 224 228 232 235 238 241 244 254 261 269 279 283 291 296 299 317 323 332 335 341 347 352 357 361

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 374