Book Title: Lekh Sangraha Part 01
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Rander Road Jain Sangh

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Page 18
________________ १३वीं १३वीं १४वीं x x १३वीं x 292 पंचग्रन्थी-बुद्धिसागर व्याकरण बुद्धिसागरसूरि १३वीं 314 (1) जयदेवछंदःशास्त्र जयदेव 1190 314 (2) जयदेवछंदःशास्त्र वृत्तिसह टी. हर्षट १३वीं 314 (3) कइसिट्ठ छंदःशास्त्र विरहांक १३वीं 314 (4) कइसिट्ठछंदःशास्त्रवृत्ति टी. गोपाल भट्ट 314 (5) छन्दोनुशासन जयकीर्तिसूरि 1192 317 कल्पलताविवेक (कल्पपल्लवशेष) 1205 320 काव्यादर्श (काव्यप्रकाशसंकेत) सोमेश्वर भट्ट 1283 326 (2) अलंकारदर्पण 348 वासवदत्ता सुबंधु 1207 x 351 निर्वाणलीलावतीमहाकथाउद्धार जिनरत्नसूरि 352 लीलावतीकथा कुतूहल कवि 1265 364 (1) न्यायावतारसूत्रवृत्ति टिप्पणी टि. ज्ञानश्री आर्यिका 1490 364 (3) न्यायप्रवेशवृत्तिपंजिका पार्श्वदेवगणि 1490 369 प्रमालक्ष्मलक्षणसटीक जिनेश्वरसूरि 1201 x 371 धर्मोत्तरटिप्पनक मल्लवादी . 373 सर्वसिद्धान्तप्रवेश १२वीं x 387 (2) प्रमाणान्तर्भाव देवभद्र, यशोभद्र 1114 x 393 सांख्यसप्ततिका वृत्तिसह 1176 x 394 सांख्यसप्ततिका वृत्तिसह 399 श्रृंगारमंजरी महाराज भोजदेव १२वीं ___ इसके अतिरिक्त पउमचरियं (ले. सं. 1198), वसुदेवहिण्डी (ले. सं. 1228), समराइच्चकहा (ले. सं. 1250), कुवलयमालाकथा (ले. सं. 1139), तिलकमंजरी (ले. सं. 1130), उपमितिभवप्रपंच कथा (ले. सं. 1305) की प्राचीनतम प्रतियाँ उपलब्ध हैं और जिनवल्लभसूरि रचित अनेक स्तोत्र प्राप्त हैं जो अभी तक अप्रकाशित हैं। बौद्ध दर्शन के भी निम्नांकित विशिष्ट एवं दुर्लभ ग्रन्थ यहाँ उपलब्ध हैं - 364 (2) न्यायबिंदुवृत्ति टिप्पणी सह धर्मोत्तर 1490 375 (1) न्यायप्रवेशसूत्र दिङ्नाग 1201 375 (3) न्यायप्रवेशटीका हरिभद्रसूरि 1201 376 (1) न्यायबिंदु (लघुधर्मोत्तरसूत्र) धर्मकीर्ति १३वीं पू. 376 (2) न्यायबिंदु टीका धर्मोत्तरपाद १३वीं पृ. 377 तत्वसंग्रहसूत्र शान्तरक्षित १२वीं 378 तत्वसंग्रहपंजिकावृत्ति १२वीं ___ भारतीय न्याय-दर्शन के ग्रन्थों की भी प्राचीनतम प्रतियाँ इस भंडार में सुरक्षित हैं जो अन्यत्र दुर्लभ है - ' लेख संग्रह x. १२वीं .

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