Book Title: Lekh Sangraha Part 01
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Rander Road Jain Sangh

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Page 17
________________ कतो 245 १३वीं वि. सं. 1207 की 'ध्वन्यालोक लोचन' की थी, जिसे संशोधन-सम्पादन करने हेतु पुरातत्वाचार्य पद्मश्री मुनि जिनविजयजी लाये थे। यह प्रति वापस जैसलमेर नहीं पहुँची और वह आजकल राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर की शोभा बढ़ा रही है। जैन आगम, चूर्णि, नियुक्ति, टीकाएँ, प्रकरण, चरित्र साहित्य की दृष्टि से यहाँ प्राचीन ११वीं से १४वीं तक की विपुल सामग्री उपलब्ध है। इनका पाठभेद/पाठान्तरों की दृष्टि से उपयोग किया जा सकता है। इस संग्रह में जो दुर्लभ, अन्यत्र, अप्राप्त एवं विशिष्ट सामग्री है उनमें से कतिपय महत्वपूर्ण ग्रन्थों के नामोल्लेख प्रस्तुत हैं - क्रमांक ग्रन्थनाम लेखन संवत् x 34 (2) ज्योतिष्करंडकसूत्र वृत्तिसह पादलिप्ताचार्य 1489 85 (2) दशवैकालिकचूर्णी अगस्त्यसिंह १२वीं पूर्वार्ध x 122 ओघनियुक्तिबृहद्भाष्य 1491 149 अंगविद्याप्रकीर्णक 1488 151 (15) संवेगमंजरी देवभद्रसूरि १४वीं मचरित्र गुणपाल १४वीं 250 आदिनाथचरित्र वर्धमानसूरि 1339 259 नेमिनाहचरिउ . हरिभद्रसूरि 261 पार्श्वनाथचरित्र देवभद्रसूरि १३वीं 263 महावीर चरित्र देवभद्रसूरि 1242 270 (1) धन्यशालिभद्रचरित्र पूर्णभद्र 1309 270 (2) कृतपुण्यचरित्र पूर्णभद्र 1309 270 (3) अतिमुक्तकचरित्र पूर्णभद्र 1309 x 270 (4-5) दशश्रावकचरित्र चूर्णि सह. पूर्णभद्र. 1309 271 पृथ्वीचंद्रचरित्र शान्तिसूरि , 1225 x272 प्रत्येकबुद्धचतुष्कचरित्र लक्ष्मीतिलक १४वीं 274 नरवर्मचरित्र विवेकसमुद्र १५वीं x 279 (1) आशापल्लीयउदयनविहारस्थ प्रद्युम्नसूरि १४वीं जिनबिम्बअवन्द्यत्वमतव्यस्थापन 279 (2) आशापल्लीयउदयनविहारस्थ जिनपतिसूरि १४वीं जिनबिम्बावन्द्यत्वमतनिरास x 280-281 गणधरसार्द्धशतक वृहद्वृत्ति सहित जिनदत्तसूरि, सुमतिगणि १४वीं टी. सुमतिगणि x 284 (1) तपोटमतकुट्टनशत जिनप्रभसूरि १६वीं x 284 (2) तपोटर्षिमतखंडन स्वोपज्ञवृत्ति सह. गुणप्रभसूरि x 289 कातन्त्रव्याकरण-दुर्गसिंहवृत्ति-दुर्गपद प्रबोध प्रबोधमूर्ति १४वीं X X X १६वीं X X a लेख संग्रह

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