Book Title: Laghu Shanti Vidhan
Author(s): Rajmal Pavaiya
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Foundation

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Page 9
________________ =॥ लघु शान्ति विधान ॥= IS संयम का भाव जागते ही, चेतन शुद्ध होता। चौकड़ी कषाय तीन को, हर कर यह जिनमुनि होता।। समकित पाते ही सिद्धों, का लघुनन्दन बन जाता। रागों के महल गिराता, आगे ही बढ़ता जाता ।। निश्चय संयम पाते ही, सिद्धों समान लगता है। इसका पुरुषार्थ देखकर, चारित्रमोह भगता है ।। फिर घातिकर्म क्षय होते ही, केवलरवि उर आता है। अर्हन्तदशा मिलती है, सर्वस्व स्वपद पाता है ।। अतएव आज ही अपना, अन्तर्मन शुद्ध करें हम । मिथ्यात्व मोह रागादि भावों, को पूर्ण हरें हम ।। ॐ ह्रीं श्री नवदेवेभ्यो जयमाला पूर्णायँ निर्वपामीति स्वाहा। (दोहा) नवदेवों का ध्यान कर, करूँ स्व-पर कल्याण । रत्नत्रय की भक्ति से, पाऊँ पद निर्वाण ।। __(पुष्पाञ्जलिं क्षिपेत्) अावली अरहन्तपरमेष्ठीको अर्घ्य (चान्द्रायण) सकल ज्ञेय के ज्ञायक श्री अरहन्त हैं। छियालीस गुणधारी प्रभु भगवन्त हैं ।। दोष अठारह रहित नाथ हैं सर्वथा। युगपत् लोकालोक जानते हैं तथा ।। अरहन्तों को नमन करूँ मैं भाव से । रागत्याग जुड़ जाऊँ शुद्धस्वभाव से ।। दर्शन-ज्ञान-चारित्र-भक्ति उर हो सदा । परम शान्ति सुख पाऊँ स्वामी सर्वदा ।। BP ॐ ह्रीं श्री षट्चत्वारिंशत्गुणमण्डित-अरहन्तपरमेष्ठिभ्योऽयं नि. स्वा. = (८) -

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