________________
॥ लघु शान्ति विधान ।।
ज्योतिषी देवों के असंख्यात जिनालयों को अर्घ्य चन्द्र-सूर्य-नक्षत्र - प्रकीर्णक, तारे आदि ज्योतिषलोक । इनमें असंख्यात जिनमन्दिर, सबको सविनय दूँ नित धोक ॥। इन नवग्रह के सर्व जिनालय, भक्ति भाव से नमन करूँ । परम शान्ति का सिन्धु प्राप्त कर, मिथ्याभ्रम-तम हनन करूँ ।। ॐ ह्रीं श्री ज्योतिषलोकसम्बन्धि-असंख्यात - जिनालयेभ्योऽर्घ्यं निर्व. स्वाहा । ऊर्ध्वलोक में सोलह स्वर्गों के चौरासी लाख छियानवे हजार सात सौ जिनालयों को अर्ध्य
प्रथम स्वर्ग सौधर्म जिनालय, है बत्तीस लाख सुन्दर । द्वितीय स्वर्ग ईशान जिनालय, अट्ठाईस लाख मनहर ।। तृतीय सनतकुमार स्वर्ग के, बारह लाख जिनालय भव्य । चतुर्थ-स्वर्ग महेन्द्र मनोहर, आठ लाख जिनालय भव्य ॥ पंचम ब्रह्म छठे ब्रह्मोत्तर, के हैं चार लाख विमान । सप्तम लान्तव अष्टम कापिष्ठ, हैं सहस्र पचास महान ।। नवम शुक्र महाशुक्र दशम के, हैं चालीस हजार प्रधान ।
एकादशम शतार द्वादशम, सहस्रार छह सहस्र सुजान ।। तेरह आनत चौदह प्राणत, पन्द्रह आरण भव्य विमान 1 सोलह अच्युत इन चारों के, सात शतक जिनगृह छविमान ।। सब मिल लाख चौरासी, छियानवे हजार सात शतक । परम शान्ति पाने को स्वामी, ध्याऊँ शाश्वत निज आलय ।। ॐ ह्रीं श्री ऊर्ध्वलोकसम्बन्धि - षोडशस्वर्गस्थ सप्तशतकाधिक - षण्णवति सहस्र-चतुरशीतिलक्षजिनालयेभ्योऽर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा । नवग्रैवेयक के तीन सौ नौ जिनालयों को अर्घ्य नवग्रैवेयक की प्रथमत्रयी के, एक शतक ग्यारह वन्दूँ । द्वितीयत्रयी के एक शतक, अरु सात जिनालय अभिनन्दूँ ।।
Vor
(१६)