Book Title: Laghu Shanti Vidhan Author(s): Rajmal Pavaiya Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Foundation View full book textPage 8
________________ ।। लघु शान्ति विधान ।। 'शुद्ध षट्कारक सदा ही, प्राप्त करना चाहिए । संचिता भव-वासना का, अन्त करना चाहिए ।। संग सामग्री यही, शिवमार्ग पर लेकर चलो । ज्ञान की दृढ़ भावना ले, कर्म कालुषता दलो ।। अब हमें सिद्धत्व की ही, प्राप्ति करना चाहिए । संचिता भव-वासना का, अन्त करना चाहिए ।। (दोहा) महा अर्घ्य अर्पण करूँ, श्री नवदेव महान । परम शान्ति की प्राप्ति हित, करूँ आपका ध्यान ।। ॐ ह्रीं श्री नवदेवेभ्यो महार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा । जयमाला (मानव) अन्तर्मन शुद्ध न हो तो, समकित कैसे पायेंगे । बिन सम्यग्दर्शन चेतन, सत्पथ पर कब आयेंगे || बिन समकित जप तप संयम, लेकर अनन्त भव धारे । फिर भी न लाभ कुछ पाया, पाये भव के अँधियारे ।। समकित बिन रत्नत्रय का, पाना है पूर्ण असम्भव । अन्तर्मन शुद्ध अगर है तो, समकित पाना सम्भव ।। पहले तत्त्वाभ्यास कर, फिर तत्त्वों का निर्णय कर । उर भेदज्ञान प्रगटा कर, सम्यग्दर्शन उर में धर ।। आत्मानुभूति बिन निश्चय, समकित न कभी मिलता है। समति ज्ञारित भी, उर में न कभी झिलता है ।। जब मुझको श्रद्धा हो उर, निज का हो ज्ञान सुसम्यक् चारित्र सहज मिलता है, शिवपथ मिलता है सम्यक् ॥ ये ही रत्नत्रय पावन है, मोक्षमार्ग का दाता । फिर पूर्ण देशसंयम भी, स्वयमेव हृदय में आता ।। (७)Page Navigation
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