Book Title: Kshetra Sparshana Prakaranam Author(s): Jagatchandravijay Publisher: ZZZ Unknown View full book textPage 2
________________ • दिव्यवंदना • प. पू. सिद्धांतमहोदधि आचार्यदेव श्रीमद्विजय प्रेमसूरीश्वरजी महाराजा प.पू. वर्धमानतपोनिधि आचार्यदेव श्रीमद्विजय भुवनभानुसूरीश्वरजी महाराजा प. पू. समता सागर पंन्यासप्रवर श्री पद्मविजयजी गणिवर्य • शुभाशीष • प.पू. सिद्धांतदिवाकर गच्छाधिपति आचार्यदेव श्रीमद्विजय जयघोषसूरीश्वरजी महाराजा प्रास्ताविकम् सकल आधि व्याधि अने उपाधिमांथी मुक्त थवानो उपाय "ज्ञानक्रियाभ्यां मोक्षः " ए सूत्रानुसारे सम्याग्ज्ञान अने सम्यक्रिया ए बन्ने रुप छे ते छतां ते बन्नेमां सम्यग्ज्ञाननी प्रथम आवश्यक्ता छे. केमके सम्यग्ज्ञान विना सम्यक् क्रिया असम्भवित छे. ज्यां सुधी जीव अजीव आदि तत्त्वोनुं पदार्थोनुं वास्तविक ज्ञान न होय त्यां सुधी हिंसा - त्याग अहिंसापालन आदि सम्यक्क्रिया क्यांथी प्रवर्ती शके ? न ज प्रवर्ते; माटे ज कह्युं छे के "पढमं णाणां तओ दया". आ रीते जोतां जीवादि तत्त्वोना ज्ञाननी प्रथम आवश्यकता छे. बीजी रीते जोतां पण "सम्यग्दर्शन ज्ञानचारित्रकताणि मोक्षमार्गः " ए सूत्रानुसारे सम्यग्दर्शन = तत्त्वश्रद्धा, सम्यग्ज्ञान अने सम्यक्चारित्र ए त्रणरुप मोक्षमार्ग कह्यो छे, छतां तेमां मध्यवर्तिज्ञान पूर्वात्तरवर्तिदर्शन अने चारित्रनुं पालक पोषक छे, अने तेथी सूत्रमां तेनी मध्यवर्त्तिता छे, तेम प्रधानता पण छे. कोई पण पदार्थनुं वास्तविक ज्ञान ते पदार्थनुं नाम मात्र सांभळवाथी के वांचवाथी नथी थई जतुं परंतु ते पदार्थना अस्तित्वादिनी सूक्ष्म विचारणा करी ते पदार्थविषयक चोक्कस निर्णय पर आववाथी थाय छे. तेवी ज रीते ते पदार्थना जातिभेदादि लई विचारणा करतां तेनो सूक्ष्म सूक्ष्मतर अने दृढ दृढत्तर बोध थाय छे. दा.त. जीवपदार्थ लईए तो जीवनुं अस्तित्व कई कई रीते सिद्ध छे ? जीवना अवान्तर भेदोनुं (नरकगत्यादिमार्गणास्थानोनुं) ४Page Navigation
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