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*१६ गौतमबुद्ध-विहारमार्ग-- ... A भगवान् वैशालीसे भण्डग्राम, हस्तिग्राम, आम्रपाम, जम्बूमाम और भोगनगर होते हुए पावा आए थे। ('दीघनिकाय' २, ३ । 'धर्मदूत' क्रमांक १४१ १० १२३) B कोसम्बि चापि साकेतं, सावत्थिं च पुरुत्तमं ।
सेतव्यं कपिलवत्थु, कुसिनारं च मन्दिरं ।। पावं च भोगनगरं, वेशालिं मागधं पुरं ।
' ('मुनिपास', 'धर्मदूत' क० १४१, पृ० १२५) C अम्बलत्थिका,नालन्दा,माटलिग्राम,कोटिग्राम,नादिका, वैशाली।
(गौतमबुद्धकी अंतिम यात्रा,
'महापरिनिब्बाणसुत्त' 'वैशाली', पृ०२६) D भगवान् वैशालीवनं अविशरण दक्षिणेन ।
सर्वकार्येन नामावलोकितेन व्यलोकयति ॥ इदं आनन्द ! तथागतस्य अपश्चिमं वैशालीदर्शनम् । न भूयो आनन्द ! तथागतो वैशाली आगमिष्यति ॥
('वैशाली अभिनन्दनग्रन्थ' पृष्ठ १५.) ___E नगरके दक्षिण तीन ली पर अम्बपाली वेश्याका बाग है, जिसे उसने बुद्धदेवको दान दिया कि वे उसमें रहें । बुद्धदेव परिनिव्वाणके लिये जब सब शिष्यों सहित वैशाली नगरके पश्चिम द्वारसे निकले तो दाहिनी ओर वैशाली नगरको देखकर शिष्योंसे कहा यह मेरी अतिम क्दिा है। पीछे लोगोने वहां स्तूप बनवाया।
(चीनी भिक्षु 'फाहियाम-यात्रा', 'वैशाली' पृ० १९)
नम