Book Title: Keshari Kevali Charitram
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ भापति केशरीला अन्वयः-सार असार अखिल जगत् नुति निंदा वियुक्त धीः, भग्न दुरित क्रमः, सः मध्यस्थता मग्नः तस्थौ. // 51 // || सावन चरित्र अर्थः-सारा नरसा समस्त जगतनी स्तुति अथवा निंदाथी रहित बुद्धिवाळो, तथा पापोनी श्रेणिने तोडी पाडनारो ते केशरीचोर मध्यस्थ भावना भावतोयको (त्यां) उभो रह्यो. // 52 // * // 17 // ला॥१७॥ शेषां रात्रि दिनं चास्थादेष साम्यलयस्तथा / यथा स्थिरं मनो लीनं पवित्रे परमात्मनि // 52 // __अन्वयः-शेषां रात्रिं च दिनं एषः साम्य लयः तथा अस्थात्, यथा पवित्रे परमात्मनि लीनं मनः स्थिरं // 52 // अर्थः-बाकी रहेली रात्रि तथा दिवसमुधी ते समतामां लीन थइने एवीरीते रह्यो, के जेथी पवित्र परमात्ममां तेनुं मन लीन थइने स्थिर थइ गयु.॥५२॥ घातिकर्मक्षये सायं ज्ञानं जज्ञेऽस्य केवलम् / सर्वत्रान्वेषयंस्तन तदा नृपतिरण्यगात् // 53 // ___ अन्वयः-याति कर्म क्षये सायं अस्य केवलं ज्ञानं जज्ञे, तदा नृपतिः अपि सर्वत्र अन्वेषयन् तत्र अगाव. // 53 // अर्थः-घातिकर्मोनो क्षय थतां संध्याकाळे तेने केवलज्ञान उत्पन्न थयुं, एवामां ते राजा पण सर्व जगोए तेनी शोध करतोथको त्यां आवी पहोंच्यो. // 53 // इतश्चान्वपतद्भपस्तं हन्तुं भटभारभाक् / इतश्चागान्मरुद्वगों नन्तुं दत्तव्रतध्वजः // 54 // BAAR Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.GunratnasunM.S.

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