Book Title: Keshari Kevali Charitram
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 17
________________ केशरी० [II ग्रामारामावनी क्वापि कस्यापि दिशतो मुनेः। ध्यानतत्वं वचश्चौरः श्रद्धयेत्यशृणोत्तदा // 48 // सान्वय चरित्र अन्वयः तदा क्व अपि ग्राम आराम अवनौ दिशतः कस्य अपि मुनेः इति ध्यान तत्त्वं वचः चौरः श्रद्धया अशृणोत्. // 48 // भाषांतर PI अर्थः-एवामां क्यांक गामपासेना बगीचानी भूमिमां धर्मदेशना आपता कोइक मुनिराजनुं, एवी रीतनुं ध्यानना साररूप बचना ते चोरे श्रद्धाथी सांभळ्यु.॥१८॥ सर्वत्र ध्यानसमतारुचिर्मुच्येत पातकैः / जनः सद्योऽपि तिमिरैः कृतदीप इवालयः॥४९॥ इति हृन्मर्मनिर्मग्नं चौरस्तद्भावयन्वचः / वपुरुत्पुलकं बिभ्रदूर्ध्वस्तत्रैव तस्थिवान् // 50 // युग्मम् // अन्वयः कृत दीपः आलयः तिमिरैः इव, ध्यान समता रुचिः जनः सर्वत्र सद्यः पातकैः अपि मुच्येत. // 49 // इति हद मर्म निर्मग्नं तवचः भावयन् चौरः उत्पुलकं वपुः विभ्रत् तत्र एव उर्ध्वः तस्थिवान् // 50 // युग्मं // . अर्थः-करेलो छे दीपक जेमां एवं मकान जेम अंधकारी मुक्त थाय छे, तेम ध्यानथी समभावमा रहेलो मनुष्य सर्व जगोए तुरत पापोथी पण मुक्त थाय छे. // 49 // एरीते हृदयना मर्मस्थानमा प्राप्त थयेला ते वचनने भावतो थको ते चोर रोमांचित शरीर धारण करतोथको त्यांज उभी थइ रह्यो. // 50 // युग्मं // सारासाराखिलजगन्नुतिनिन्दावियुक्तधीः / तस्थौ मध्यस्थतामग्नः स भग्नदुरितक्रमः // 51 // P.P.A. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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