Book Title: Karmagrantha Part 4 Shadshitik
Author(s): Devendrasuri, Sukhlal Sanghavi
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 11
________________ (१०) अन्त में त्रुटि के सम्बन्ध में कुछ कहना है। विचार व मनन करके लिखने में भरसक सावधानी रखने पर भी कुछ कमी रह जाना अवश्य सम्भव है, क्योंकि मुझको तो दिन-ब-दिन अपनी अपूर्णता का ही अनुभव होता जाता है। छपाई की शुद्धि की ओर मेरा अधिक खयाल था, तदनुकूल प्रयास और खर्च भी किया, पर लाचार, बीमार होकर काशी से अहमदाबाद चले आने के कारण प्रस्तावना मेरी अनुपस्थिति में छपी जिसके कारण कुछ गलतियाँ अवश्य रह गई हैं, जिनका दुःख वाचकों की अपेक्षा मुझको अधिक है। इसलिये विचारशील पाठकों से यह .. निवेदन है कि वे त्रुटियाँ सुधार कर पढ़े। निवेदक सुखलाल संघवी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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