Book Title: Kalpsutram
Author(s): Vinayvijay Gani
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 14
________________ कल्पमूत्र. उपोद्धातः सुबोधि० ॥६॥ ॥ अहम् ॥ विद्वन्मान्याः! हर्षास्पदमेतन्निखिलजनामानमानवतां भवता यत्सम्प्रति श्रीआत्मानन्दग्रन्थरत्नमालाया इदमेकत्रिंशं रत्नं कल्पाभिधानमतिप्रनं सूत्ररत्नं समलङ्कृत्य सुबोधिकाभिधया वृत्त्या प्रकाश्यमानमालोक्यते जैनसंस्कृतसाहित्यसुधारससरसाखादनतत्परैस्तत्र भवद्भिर्विपश्चिद्भिः । यद्यपि जातमस्मात्पुरापिं प्रकाशनद्वयमस्य, परं न तत्ताहशानन्दाय कल्पते श्रमणानां श्रावकाणाञ्चोत्पत्स्यते यादृश एतेनेति नावितथम् । अतोऽस्य प्रकाशनेऽर्थव्ययायोपदेशं संशोधनेऽसीमपरिश्रमञ्च विधाय न्यायाम्भोनिधिजैनाचार्यश्रीमद्विजयानन्दसूरिशिष्यप्रशिष्यैः पण्डितप्रकाण्डैमुनिवलभविजयैरनुगृहीतोयमाहतसमाज इति नातिरिक्तं वचः। | तथा चैवं विधे शुभोदयकरे ज्ञानरत्नाकरेऽर्थदानसाहाय्येन ज्ञानवृद्धिं विदधतां अणहिल्लपाटक (पाटण) नगरवास्तव्यानांचुनीलाल सांकलचंद-इति नामधेयानां श्रेष्ठिवर्याणां वदान्यतापि सततमभिनन्दनीया, अनुकरणीया चान्यैरपि धनिकैरिति सततं प्रार्थयते- . भावनगरस्था-"श्रीजैन-आत्मानंद-सभा" गुर्जरदेशीयसंवत् १९७१ ज्येष्ठ शुक्लपूर्णिमा-रविवार. तारीख २७ जून १९१५.

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