Book Title: Kalpsutram
Author(s): Bhadrabahuswami, Suryodaysuri, Dharmsagar
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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पृष्ठम् पङ्क्तिः ११२
पृष्ठम् पङिक्तः
शुद्धम्
अशुद्धम् प्राइनि पुणरविर०
शुद्धम् प्रागनि० पुणरवि०
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प्रेशन्तो अप निवृतश्च गंभीरम् याणा भक्तिः पृथुला व्याप्नुवावन्तं गुरुपप० संविः जागरिता दलायणा)
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चञ्चलैः प्रेशन्तो अपनिवृत्तश्च गभीरम् त्रेयाणां भक्तिभिः पृथुलो व्याप्नुवन्तं गुरुप संविजागरिता दलोयणा)
अशुद्धम् वयासा' साहवि० मंगल मुंपक सङ्गामत: तिसला स्वामीन् विदधति सम्मार्जिताः अंति . (उववागअपरावे
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साहावि० मंगल भूषक० सङ्ग्रामतः सा तिसला स्वामिन् विदधती सम्मार्जिता अंति. (उवाग
अपराद्धे ज्जाओ पायपी० सालं)
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पायापी० साल)
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