Book Title: Kalpsutram
Author(s): Bhadrabahuswami, Suryodaysuri, Dharmsagar
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 11
________________ पृष्ठम् पङ्क्तिः » 0. पEAAAAAAAAACAR अशुद्धम् लोकालो द्युपहृतः मन्यपि प्रधान्येना जागरत्ति) हहत० इत्यादिषु गम्भीरं धनायुषि एनमर्थ देवाणुप्आि रनिकेतने प्रकर्ष भागा "सदृश्ये शुद्धिपत्रकम् शुद्धम् पृष्ठम् पङ्क्तिः लोकलो. ग्रुपहत० मन्यदपि प्राधान्येना जागरा) ਵਰਨ इत्यादि गभोरं धनायूंषि एनमर्थ देवाणुप्पिा ६८१ स्वनिकेतने प्रकर्षपरि भोगावसदृश्ये अशुद्धम् जिवा० प्रभु पन्थानया द्वितीये वंदाभि कुक्षी (पासेउ (निसण्ण) अल्प० ऽऽश्वर्यभूत० अभाविआ तीर्य प्रासादात् संवृत्तानि शुद्धम् जवा० प्रभु पन्थान द्वितीयसमये च वंदामि कुक्षौ (पास (संनिसण्णे) तुच्छकुलेषु अल्प ऽश्चर्यभूत. अभाविआ तीर्थ प्रसादात् संवृतानि SAHES 00mm ६०B ६०B , Jain Education interational For Private & Personal use only www.jainelibrary.org

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