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प्रस्तावना जगतभरना कल्याणने इच्छनारा पूर्वमहर्षिओए भिक्षामात्र उपर रही एटलुं बधुं काम करेल छ के ज्यारे आपणे ते तरफ नजर नाखीए त्यारे आपणने आश्चर्य थया वगर रहेतुं नथी. कारण के ते महापुरुषोए परिमितजीवनकाळमां ग्रामानुग्राम विचरी जगतभरने उपदेशामृत वर्षावतां छतां अने हर हमेश धार्मिकक्रियानुष्ठान अने आत्मरमणमां लीन छतां आवा महान अने गंभीर अनेक ग्रंथो क्यारे अने केवी रीते रच्या हशे ?
- श्रेत्र प्रत्ये नजर नांखीए तो आपणे जोइ शकीशं के संख्याप्रमाणमां अल्पछतां जैनोए तमाम क्षेत्रमा प्रधानपणे भाग भजवेल छे. राजद्वारी धर्म दया नीति अने बीजा तमाम सामुदायिक कार्योमा जैनश्रावकवर्ग सौनो मार्ग दर्शक रुपेज रहेल छे. ज्यारे जगतभरना तमाम व्यापारोथी पर अने आत्मध्यानमां रक्त रही स्वपर कल्याण साधता जैनमुनिओए धर्म, साहित्यविगेरे धर्मोपयोगी कार्योमा सौथी पोतानो हिस्सो मुख्यपणे आपेल छे ते निर्विवाद छे. कारणके तेमणे साहित्य, काव्य, नाटय, नीति, मंत्र, ज्योतिष, शिल्प, निमित्त विगेरे सामान्य जीवनउपयोगी वस्तुओने पण धर्मोपयोगी बनाववा पूर्णपणे प्रयत्न करेलज छे अने तेने माटे नवु ने अद्वितीय अपूर्व साहित्य जगत आगळ सज्यु छे. आ रीते जैन श्रावकवर्ग अने जैनमुनिवर्ग जगतना व्यवहार अने धर्ममां अत्यंत उपयोगी भाग भजवेल छे. ते निर्विवाद छे आ सामान्य साहित्य पछी लोकोत्तर साहित्य संबंधी आपणे विचार करशुं तो ते पण मूख्यपणे चार विभागमां व्हेचायेलुं छे अने ते द्रव्यानुयोग गणितानुयोग चरणकरणानुयोग ने