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कल्प
प्रदीपिका
कथानुयोग छे. आ चारे प्रकारना अनुयोगवाळा सकल साहित्यमा पण कल्पसूत्र अजोड छ कारण के ते कल्पसत्रनो महिमा अने परमोत्कृष्टता दर्शावनारा आ नीचेनां पद्यो यथा द्रुमेषु कल्पद्रुः इत्यादि प्राचीनने अर्वाचीन नानीमोटी | तमाम टीकाओमां नजरे पडे छे तेज तेनी उत्तमताने पूज्यतानी साबिति आपे छे.
तेमज आ कल्पसूत्रनी रचना चउदपूर्वधर जगदुपकारी युगप्रधान श्रीमान् भद्रबाहु स्वामीए प्रत्याख्यानप्रवाद नामना नवमा पूर्वमांथी दशाश्रुतस्कन्धना आठमा अध्ययन पणाए रचेल छे. ते आजे स्पष्ट छे. उपदेशक के रचयितानाजीवनचर्यानी असर तेना ग्रंथमां के उपदेशमा जरुर उतरे छे अने तेने लइनेज ते ग्रंथ के तेना उपदेशनी असर एटली बधी चिरंजीवने फळदायक नीवडे छे के तेना श्रोता के वांचक ते ग्रंथके वचनद्वारा पोताना जीवनने समृद्ध करी शके छे. अने तेथीज आवा महापुरुषना रचेला आ ग्रंथने हजारो वर्ष थया छतां बाळथी वृद्ध सुधीनो तमाम वर्ग तेना श्रवण, पूजन अने आराधना माटे हरहमेशां पर्युषणपर्वमा उद्यत रह्या करे छे...
आ पर्युषणापर्वने पर्वाधिराजना नामथी संबोधवामां आवे छे ते योग्य छे. कारणके दरेक वस्तुना पर्वनी पाछळ ते ते कार्यनी सिद्धिनो आधार होयज छे. जेम अन्यदर्शनोना तमाम पर्वनी पाछळ ते ते दर्शनोना साध्यने al जीवनमा उतारवानो आशय मूख्य होय छे तेम आपणा समाजमां तीर्थकरना कल्याणको विगेरे तमाम पर्वोमां ज्ञान
दर्शन अने चारित्रने लोकजीवनमा विशेष पुष्टचने ते मूख्य होय छे. परंतु जे पर्वमा ज्ञान दर्शन चारित्रनो वधु उत्कर्ष तमाम जनतामा जळहळे ते पूर्व तमाम पर्वमा विशिष्टपर्व लेखाय ते सहज छे.