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हजी कल्पप्रदीपिका, दीपिका अने कल्पटिप्पन विगेरे कल्पसूत्रनी व्याख्यारूपे बनली टीकाओ अप्रसिद्ध छे. तेमांथी आ कल्पप्रदीपिका टीका सरळ टुंकी अने हृदयंगम प्राचीन टीका छे. जे आजे बहार पडतां अत्यंत उपयोगी थइ पडशे. कारण कल्पकीरणावली कठिन अने विद्वान माणसो वांची शके तेवी होइ तेनो लाभ सामान्य अभ्यासी ओछाज लह शके छे. सुबोधिका सरळ होवा छतां अत्यंत विस्तीर्ण होवाथी पांच दीवसमां पुरूं करवानी पद्धतिने लड़ने वांचकमुनि ने श्रोता घणा कंटाळे छे तेओने आ टुंकवखतमां पूर्णपामे तेवी होवा छतां सर्व विषयोने हृदयस्पर्शी प्रतिपादन करनारी टीका जरुर उपयोगी नीवडशे.
कल्पकीरणावलीनी रचना राधनपुरमां विक्रमसंवत १६२८ नी दीवाळीमां धर्मसागर उपाध्याए करेल छे. जेनुं टीका प्रमाण ४८१४ श्लोक अने उपर १६ अक्षर प्रमाण छे. कल्पसूत्रमूळ १२१६ श्लोकप्रमाण छे.
कल्पदीपिका टीकानी पंडित जयविजयजीए वृद्धिविजयनी प्रार्थनाथी संवत - १६७७ कारतक सुदी - ६ ना दीवसे करेल छे. अने जेने ते वखतना गणाता समर्थ विद्यान पं भावविजयजीए संशोधन करेल छे. जेनुं टीका प्रमाण ३५३२ श्लोक प्रमाण छे अने कल्पसूत्र मूळ प्रमाण १२१६ श्लोक प्रमाण छे.
कल्पसूबोधिकाटीकानी रचना सहु छेल्ले उपाध्याय विनयविजयजी ए लगभग विक्रमसंवत वि. १७१० नी सालमां रचना करी छे. जेनुं श्लोक प्रमाण लगभग ५४०० श्लोक सुधीनं विस्तीर्ण छे. आ टीकाना पण संशोधक प्रखर पंडित भावविजयजी गणि छे.