Book Title: Kaisi ho Ekkisvi Sadi
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 6
________________ संपादकीय प्रत्येक व्यक्ति सोचता है आजकल कैसा होगा कल? क्या होगा कल? किसने देखा है कल? किसका होगा कल? क्या आज से बदतर होगा कल ? क्या आज से बेहतर होगा कल? चिन्ता है कल की चिन्तन है कल का कामना है सुखद कल की भावना है सुखद फल की। बीत रही है बीसवीं शताब्दी सामने है इक्कीसवीं शताब्दी उभर रहे हैं अनेक प्रश्न नाना कल्पनाएं नाना स्वप्न वह भौतिकवाद की होगी या अध्यात्मवाद की? पदार्थवाद की होगी या आत्मवाद की? मानव का मूल्य बढ़ेगा या पदार्थ का? चैतन्य का मूल्य बढ़ेगा या जड़ का? कैसा होगा इक्कीसवीं शताब्दी का मानव? क्या वह बढ़ा पाएगा अपना वर्चस्व? क्या बुझेगी आग हिंसा और अशांति की? फैलेगी शीतल सुवास अहिंसा और शांति की? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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